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शव साधना का पूरा सच, रह जाएंगे आप हैरान...

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हमें फॉलो करें शव साधना
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प्रीति सोनी

शव साधना, यानि शव के माध्यम से शिव को साधना। सुनने में जितनी सरल लगती है इसकी परिभाषा, जानने, समझने, देखने में उतनी ही कठिन, भयावह लेकिन फिर भी रोचक है यह शव साधना।

काली, अंधेरी आधी रात का वह समय, जब गहरी नींद में होते हैं और जीव-जंतुओं की रहस्यमयी आवाजें मन में डर भी पैदा करती हैं...उस समय अघोरी-तांत्रिकों द्वारा की जाती है शव को साधने की यह प्रक्रिया। हम हम सोते हैं तब जागता है पूरा श्मशान...वह श्मशान, जहां दिन के उजाले में जाने से भी रूह कांपती है...वहीं लगता है अघोरी-तांत्रिकों और आत्माओं और शवों का मेला...और होती है शव की साधना। आखिर क्या है यह शव साधना, कैसे और क्यों की जाती है...क्या होता है इस दौरान और भी कुछ रहस्यमयी और डरावने सच.....आप भी जानिए।
 
 
शव साधना का पूरा सच...अगले पेज पर 

अघोरियों द्वारा खास तौर से श्मशान में तीन प्रकार की साधनाएं की जाती हैं जिनमें श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना शामिल हैं। प्रमुख रूप से इन साधनाओं को अघोरी प्रसिद्ध शक्तिपीठों जैसे - कामाख्या शक्तिपीठ, तारापीठ, बगुलामुखी या भैरव आदि स्थानों पर करते हैं।
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इन साधनाओं को करने के अलावा संसार में इनका कोई और लक्ष्य नहीं होता और साधना के बाद या अन्य समय में ये अघोरी हिमालय के जंगलों में निवास करते हैं। इन्हें साधारण तौर पर देखा भी नहीं जा सकता ना ही ये अघोरी तांत्रिक समाज में शामिल होते हैं। परंतु सिंहस्थ या कुंभ के समय इनके दर्शन आसानी से किए जा सकते हैं।
 
शव-साधना का अर्थ है, श्मशान में स्वयं के शरीर की अनुभूति को शव के समान निःसत्व करके, अपने उद्देश्य की मानसिक रूप से साधना करना है। अघोरियों द्वारा की जाने वाली श्मशान साधना में श्मशान को जगाकर साधना की जाती है।

शव साधना के लिए किसी शव का होना आवश्यक है। अघोरी यदि पुरुष है, तो उसे साधना के लिए स्त्री के शव की आवश्यकता होगी और यदि अघोरी स्त्री है तो शव साधना के लिए पुरुष का शव आवश्यक है। परंतु शव का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि शव किस श्रेणी का है। किसी चांडाल, दुर्घटना में मरे हुए व्यक्ति या फिर अकारण मरने वाले युवा का शव, शवसाधना के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है।

 
शव साधना के रहस्य और खतरे....जानिए अगले पेज पर

शव साधना विशेष समयकाल में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। कृष्ण पक्ष की अमावस्या या शुक्ल पक्ष अथवा कृष्णपक्ष की चतुर्दशी वाले दिन यह बेहद महत्वपूर्ण होती है। इसके साथ यदि मंगलवार का संयोग हो यह सोने पर सुहागे के समान है। 
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कहा जाता है कि शव साधना आसान नहीं है। इस साधना को करते समय श्मशान में कई दृश्य और अदृश्य बाधाएं आती हैं, जिन्हें हटाना एक सिद्ध और जानकार अघोरी अच्छी तरह से जानता है। साधना के पूर्व ही अघोरी को संबंधित स्थान को भूत-प्रेतों और अन्य बाधाओं से सुरक्षित रखना होता है, ताकि वे साधना के बीच में विघ्‍न पैदा न कर सके। इसके लिए अग्नि तो होती ही है, अघोरी मंत्रोच्चार करते हुए आसपास एक लकीर खींचते हुए एक घेरा बनाता है और साथ ही तुतई बजाता है जिससे भूत-प्रेत या कोई भी बाधा प्रवेश न कर सके। इसके बाद विधि-विधान से साधना आरंभ की जाती है।
 
जिस शव की साधना की जानी है उसे स्नान करवाकर, कपड़े से पोंछकर उस पर सुगंधित तेलों का छिड़काव किया जाता है। लाल चंदन का लेप किया जाता है। शव के उदर पर यंत्र बनाकर, उदर पर बैठकर यह साधना की जाती है। साधना में लगातार मंत्रोच्चार और क्रिया जारी रहती है।शव साधना में विशेष बात यह है कि यह साधना उपयोग किए जा रहे शव की मर्जी से होना आवश्यक है, अन्यथा यह मुसीबत भी बन सकती है।
 
कैसे होती है साधक की रक्षा...और भी जानिए...अगले पेज पर 

चारों दिशाओं में रक्षा हेतु गुरु, बटुक भैरव, योगिनी और श्रीगणेश की आराधना भी की जाती है। भैरव और भैरवी की साधना भी इसमें आवश्यक मानी जाती है। वहीं सभी दिशाओं के दि‍गपाल की आराधना भी आवश्यक है।
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भोग स्वरुप बकरे या मुर्गे की बलि देने के साथ ही शराब चढ़ाना भी अनिवार्य होता है। शव को भी यह चीजें अर्पित की जाती है। कुछ ही समय में देखते ही देखते य‍ह भोग समाप्त हो जाता है। 
 
इस साधना के पूर्ण होते-होते मुर्दा या शव भी बोलने लगता है। साधना पूर्ण होने पर साधक वह सिद्धी प्राप्त कर लेता है जिसके लिए वह शव साधना कर रहा था।

आधी रात बीतेते-बीतते शव की आंखें भी विचलित होने लगती है और उसके शरीर में कई परिवर्तन एक साथ देखे जा सकते हैं। लेकिन इन भयावह और खतरनाक दृश्यों को देखते हुए भी साधक का मन लक्ष्य से नहीं हटना चाहिए। उसे मंत्रोच्चार जारी रखने होते हैं ताकि साधना को पूर्ण किया जा सके।

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