- मणिशंकर उपाध्याय
मोटे अनाज के रूप में कभी गरीबों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मक्का आज उद्योग जगत में भी अपना स्थान बना चुकी है। स्टार्च, अल्कोहल, एसिटिक व लेक्टिक एसिड, ग्लूकोज, रेयान, गोंद (लेई), चमड़े की पालिश, खाद्यान्न तेल (कार्न ऑइल), पेकिंग पदार्थ आदि में इस्तेमाल की जाने लगी है।
मानव एवं पशु आहार मक्का का पौधा मेक्सिकन मूल का माना जाता है। इसकी खेती देश के सभी प्रांतों में की जाती है। इसके लिए गर्म तर मौसम उपयुक्त होता है। खरीफ के साथ ही इसकी मुख्य फसल ली जाती है। वैसे जायद व वसंत में भी इसे उगाया जाता है। फसल नहीं देने पर इसे पशु चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। तेज सर्दी के दिन छोड़कर किसी भी माह में उगाया जा सकता है। यह अधिक उपज देने वाली फसल है।
जून-जुलाई में बोई फसल 45 दिनों में पूर्ण विकसित होकर 50 से 60 दिनों में भुट्टे देने लग जाती है। इसके लिए गहरी काली, उपजाऊ जीवांशयुक्त मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से लेकर 7.5 के बीच अच्छा होता है। ऐसी मिट्टी न क्षारीय होती है न अम्लीय।
खेत की तैयारी एक बार मिट्टी पलटने वाला हल, दो बार कल्टीवेटर, दो बार पांस वाला बखर तथा दो बार पाटा (पठार) चलाकर की जाती है। खेत समतल या हल्का सा ढालू होना आवश्यक है ताकि पानी जमा न हो। खेत में 72 घंटे पानी रुकना फसल के लिए हानिकारक हो सकता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली में मक्का पर अनुसंधान कर कई किस्में तैयार की गई हैं। इनमें गंगा सफेद-2 देश के मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसे पकने में 100 दिन लगते हैं। सफेद दाने वाली यह किस्म 60 क्विंटल तक उपज देती है। गंगा-5 किस्म के दाने नारंगी पीले होते हैं जो 95 दिनों में पकते हैं। इससे 45 से 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज मिल सकती है।
इसके अलावा पीले दाने वाली विजय किस्म 95 से 105 दिन में पकती है। इससे प्रति हैक्टेयर 45 से 50 क्विंटल उपज मिल जाती है। ये सभी संकर (हाईब्रिड) किस्में हैं। हर वर्ष इनका नया बीज बोना होता है। मध्यप्रदेश के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा इसकी कुछ संकुल (कंपोजिट) किस्में भी तैयार की गई हैं। इनके बीज एक बार लगाकर किसान अपने बीज खुद तैयार कर सकते हैं।
यह मध्यम व कम रकबे वाले किसानों के लिए उपयुक्त है। ये किस्में - चंदन मक्का-1, नवजोत, पूसा कम्पोजिट-1, पूसा कम्पोजिट-11 हैं। इसमें पौधे का संरक्षण आवश्यकता अनुसार करते रहें।
ऐसे मिलेगी पर्याप्त उपज : मक्का की फसल से पर्याप्त उपज लेने के लिए एक हैक्टेयर में 10 से 15 टन गोबर खाद या कम्पोस्ट फसल बोने के छः से आठ दिन पहले खेत में बिखेरकर पांस वाला हल चला दें। बीज बोते समय 50 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम स्फुर, 40 किलोग्राम पोटाश और 50 किलोग्राम जिंक सल्फेट बीज की कतारों के नीचे खाद बुआई यंत्र से डालें। 30 व 45 दिन बाद 50-50 किलोग्राम की मात्रा खड़ी फसल की कतारों के बीच यूरिया उर्वरक के रूप में गुड़ाई द्वारा मिट्टी में मिलाएँ।
इसमें बीज की मात्रा 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर लगती है। बोने के पूर्व पाँच ग्राम प्रोटेक्ट (ट्राइकोडर्मा विरिडि) प्रति एक किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें। पौधे स्थापित होने के बाद 20-22 सेमी की दूरी रख अविकसित पौधे निकाल दें। पौधों के बीच की दूरी 60 सेमी अच्छी मानी गई है। एक हैक्टेयर में 70 से 75 हजार पौधे होना चाहिए। 20-25 दिन के अंतर पर निंदाई-गुड़ाई करें। 25 से 35 दिन में पौधे पर मिट्टी चढ़ाने से भुट्टे आने के बाद हवा चलने पर भुट्टे गिरते नहीं हैं।