माघ महीने की शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन को बुद्धि ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती की पूजा-आराधना के रूप में मनाया जाता है।
ऋतुराज के आगमन पर मुस्कुराते व खिलखिलाते फूलों की खुशबू व महुए की मादकता सहित मौसम की रवानी आकर्षित करती है। इस मौसम का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। मदमस्त कर देने वाला यह महीना न केवल कलाकारों बल्कि सामान्य लोगों के लिए भी ढेर सारी खुशियाँ लेकर आता है। फूलों के कानों में गुनगुनाती तितली और पराग के लिए मंडराते भौरे यह कुदरत के करिश्मे हमसे जुड़ाव को बयाँ करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इसी दिन माँ सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन के सरस्वती पूजन में आम के बौर का विशेष महत्व होता है। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महिने के पाँचवें दिन बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। शास्त्रों में इसे ऋषि पंचमी भी कहा गया है। इसे मदनोत्सव भी कहा गया है क्योंकि इसी दिन से पूरे एक महिने तक बसंतोत्सव मनाया जाता है जो होली के बाद समाप्त होती है।
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ऐसा कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ब्रह्माजी के मुख से माँ सरस्वती का उद्गम हुआ था, इसलिए इसे विद्या जयंती भी कहा जाता है। आज के दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती का पूजन किया जाता है।
आज के दिन पीले रंग के वस्त्रों का विशेष महत्व होता है। पं. एचसी जैन के अनुसार श्रद्धालुओं को सुबह स्नान करके पीत वस्त्र धारण करके माँ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही पीले मीठे व नमकीन चावल बनाने व खाने की भी परंपरा है।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि वसंत पंचमी के दिन शिव पूजन का भी विशेष महत्व है। इस दिन भगवान भोले की पार्थिव प्रतिमा स्थापित कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है।
इसके बाद भगवान शिव को चंदन और रोली के साथ आम का बौर, बिल्व पत्र, मंदार का पुष्प अर्पित किया जाता है।
जब बागों में बहार आती है, खेतों में सोना चमकने लगता है, गेहूँ की बालियाँ खिलने लगती हैं, आम के पेड़ पर बौर आ जाते हैं, तब आगमन होता है ऋतुओं के राजा वसंत का। वसंत पंचमी मतलब वसंत ऋतु का आगाज अर्थात प्रेम, उत्साह, उल्लास व उमंग की शुरुआत।