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कुंडली से जानें दीर्घायु योग

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- भारती पंडित
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कुंडली में कुछ योग ऐसे होते है जो मनुष्य को दीर्घायु बनाते है। कुंडली में 8वाँ स्थान आयु का होता है और अष्टम से अष्टम होने से तीसरा स्थान भी आयु का ही माना जाता है। दीर्घायु का निर्धारण करते समय लग्न के स्वामी के बलाबल के साथ इन स्थानों के स्वामी के बलाबल और उनकी स्थिति तथा इन स्थानों में बैठे ग्रहों के स्थिति का भी आकलन किया जाना जरूरी होता है। कुछ दीर्घायु योगों की चर्चा मनीषियों ने की है जिन्हें नीचे बताया जा रहा है :

1. सभी ग्रह बलवान हो, लग्नेश प्रबल स्थिति में हो।

2. दसवे स्थान में मंगल, नवम में गुरु और पंचम में चन्द्र हो।

3. लग्न, दशम और अष्टम स्थान के स्वामी शनि के साथ केंद्र में हो।

4. कर्क, धनु या मीन राशि का गुरु केंद्र में हो, शुभ ग्रह बली होकर केंद्र में हो और शुभता लिए सूर्य 11वें भाव में हो।

5. राहू 3, 6 या 11वें स्थान में हो और पाप प्रभाव से रहित हो।

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6. अष्टम में शुभ ग्रह (गुरु नहीं) हो या स्वगृही शनि हो।

7. सारे ग्रह विषम राशियों में गए हो या सारे ग्रह अपनी स्वराशि में या मित्र ग्रहों की राशि में हो। चन्द्रमा पर और लग्न पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो।

7. चन्द्रमा स्वराशि का भाग्य में हो, लग्नेश मजबूत हो।

इन सभी योगों के रहते या इनमें से कुछ योगों के होने पर आयु योग मजबूत हो जाते है। मानव पूर्ण आयु को भोगता है। यहाँ यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि आयु योग मजबूत होने का अर्थ मनमानी दिनचर्या को जीना कदापि नहीं है।

शरीर रूपी मशीन को पूरी सावधानी से ही चलाना होगा अन्यथा उचित देखरेख के अभाव में, व्यसनों या गलत खान-पान के चलते शरीर बीमारियों का घर बन सकता है। गलत कर्मों से आयु योग क्षीण हो सकते हैं।

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