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जानिए ग्रहों की बदलती चाल का राज

सूर्य व चंद्र कभी वक्री नहीं होते

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ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहों की गतिशीलता का जीवन में घटित होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं में बड़ा महत्व है। इन घटनाओं के आकलन के लिए 27 नक्षत्रों, 9 ग्रहों व 12 राशियों को आधार बनाया गया है। राशियों व ग्रहों के अपने-अपने गुण व धर्म हैं जिसके आधार पर ज्योतिषीय कथन तय होते हैं।

संपूर्ण ब्रह्माण्ड 360 अंशों में विभाजित है। इसमें 12 राशियों मे से प्रत्येक राशि के 30 अंश हैं। इस प्रकार ये राशियां पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करती हैं। सभी 9 ग्रह प्रत्येक राशि में अपनी-अपनी गति से प्रवेश कर 30 डिग्री पार कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। प्रत्येक ग्रह की गति व राशि की 30 डिग्री को पार करने की समय सीमा अलग-अलग होती है। ग्रहों की इस गतिशीलता को गोचर कहा गया है जिसका सामान्य अर्थ है मौजूदा समय में ग्रहों की राशिगत स्थिति क्या है।

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सब ग्रहों से तेज चंद्रमा की गति :- सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु इन नौ ग्रहों में सबसे तेज गति चंद्र की है। चंद्रमा एक राशि में कोई 54 घंटे (सवा दो दिन) रह कर दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। जबकि शनि को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के लिए 30 माह यानी ढाई वर्ष का समय लगता है।

इसी प्रकार सूर्य को सामान्यतः 30 दिन, मंगल डेढ़ से तीन माह, बुध 27 दिन, गुरु 12 माह, शुक्र डेढ़ से दो माह तथा राहु व केतु 18 माह में एक राशि से दूसरी राशि में गतिमान होते हैं।

कभी वक्री नहीं होते सूर्य व चंद्र :- नौ ग्रहों में सूर्य व चंद्र ही ऐसे दो ग्रह हैं जो कभी वक्री (विपरीत गति) नहीं होते, जबकि राहु व केतु सदैव वक्री गति से ही चलते हैं। मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि ग्रह कई बार सीधी गति से चलते हुए वक्री होकर पुनः सीधी गति पर लौटते हैं।

ज्योतिष विज्ञान में सूर्य को आत्मा का तो चंद्र को मन का कारक माना गया है। मंगल युद्ध, शौर्य व नेतृत्व का कारक है तो गुरु शिक्षा, अध्यात्म व धर्म का प्रतिनिधि है। शुक्र सुंदरता, शारीरिक गठन व भोग-विलास का कारक है तो शनि न्याय व दंड के साथ प्रतिशोध मनोवृत्ति व विलंबता का प्रतिनिधित्व करता है। राहु आलस्य, अस्थिरता, उदर रोग व कूटनीति तथा केतु मानसिक अस्थिरता, लेखन, हतोत्साहितता व शोध कार्यों का कारक है।

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