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ज्योतिष में छुपा है अच्छी फसल का राज

ग्रहों के अनुसार लहलहाती है फसलें

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- सुरेंद्र बिल्लौरे
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ज्योतिष शास्त्र का उदय वहां से आरंभ होता है। जहां पर पाश्चात्य विज्ञान की समा‍प्ति होती है। ग्रह एवं नक्षत्रों का प्रभाव जीवधारियों पर तो क्या, वन‍स्पति तक भी अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है।

* हमारे दैनिक जीवन में ज्योतिष विज्ञान का अत्याधिक महत्वपूर्ण स्थान है। चंद्रमा का सीधा प्रभाव वनस्पतियों पर पड़ता है। जो फसलें धरती के अंदर (फल) से उत्पन्न होती है, अथवा जिनके फल धरती के अंदर लगते हैं जैसे आलू, शकरकंद, जमीकंद ऐसी फसलें कृष्‍ण पक्ष में बोने से अधिक मात्रा में उत्पन्न होती है। अगर यही फसल शुक्ल पक्ष बोई गई हो तो कम उपज होती है।

* ऐसे ही जो फसलें धरती के ऊपर होती है, जैसे कि गेहूं, चना, मटर, धान, ईख इन फसलों को शुक्ल पक्ष में बोने से ज्यादा उपज होती है। अलग-अलग पक्ष में बोने वाली फसलों को समान मात्रा में खाद, मिट्‍टी, पानी देने पर भी उत्पादन में अंतर आएगा। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। ग्रहों की अनुकूलता का प्रभाव जल के कमल एव कुमुदिनी पर भी स्पष्‍ट देख सक‍ते है।

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* कमल के लिए सूर्य अनुकूल रहता है। जबकि कुमुदिनी के लिए चंद्रमा का अनुकूल रहना लाभप्रद है। अर्थात् ग्रहों का प्रभाव वनस्पति पर कितना पड़ता है यह आप प्रत्यक्ष देख सकते हैं।

* इसी प्रकार अलग-अलग नक्षत्रों में होने वाली वर्षा वनस्पति पर अलग-अलग प्रभाव डालती है। विशाखा में होने वाली वर्षा का जल वन‍स्पतियों के लिए विष समान है, परंतु स्वाति नक्षत्र में होने वाली वर्षा का जल वनस्पति के लिए अमृत तुल्य है।

यह अनुभव दर्शाते हैं कि हमारे जीवन में ग्रहों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कितना प्रभाव है एवं प्रकृति पर इनका कितना महत्वपूर्ण प्रभाव है। ज्योतिष विज्ञान पाश्चात्य विज्ञान से कितने कदम आगे है। आप स्पष्ट समझ सकते हैं।

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