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कमर दर्द या कटिवात

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साधारण कमर दर्द दो-चार दिन में ठीक हो जाता है, लेकिन जो कमर दर्द लम्बे समय तक ठीक न हो और बढ़ता ही जाए, वह साधारण नहीं होता। इस विकट व्याधि के निदान और इलाज के बारे में उपयोगी विवरण इस प्रकार है-

कमर में दर्द होने के अलग-अलग कारण होते हैं और उनमें से प्रमुख कारण है वात का कुपित होना, इसलिए इस व्याधि को आयुर्वेद ने 'कटिवात' कहा है। कटि यानी कमर और वात यानी वायु। इस नाम से यह स्पष्ट हो जाता है कि आयुर्वेद इस व्याधि को वात व्याधि मानता है।

आयुर्वेद दर्द होने का प्रमुख कारण वात प्रकोप ही मानता है। अन्य चिकित्सा पद्धति में, विशेषकर एलोपैथी में ऐसा नहीं माना जाता, बल्कि ऐसा कहा जाता है कि डिस्क स्लिप हो गई है या डिस्क का डिसलोकेशन हो गया है।

लक्षण : इस व्याधि के होने का प्रमुख लक्षण कमर में दर्द होना है। शुरू के कुछ दिनों में ऐसा लगता है कि हूक चली गई है या कमर में लचक आ गई है। झुकने में, वजन उठाने में, उठकर खड़े होने या उठने-बैठने में, यहां तक कि करवट बदलने में भी दर्द होता है।

दर्द असहाय हो जाने पर डॉक्टर की शरण में जाना पड़ता है। वहां जांच-पड़ताल के बाद डॉक्टर बताते हैं कि स्लिप डिस्क का केस है। इस केस में किसी-किसी रोगी को कमर दर्द के साथ ही एक तरफ के कूल्हे में भी भयंकर दर्द होता है। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में इसका एकमात्र इलाज ऑपरेशन ही है, अन्य कोई दवा नहीं।

कारण : इस व्याधि के कारणों में अति घोर परिश्रम करना, दूषित आहार करना, कमर या कूल्हे पर चोट लगना, ज्यादा सवारी करना, अति सहवास करना, अत्यधिक शीतल, रूखा, पौष्टिक तत्वों से हीन आहार लेना और मानसिक क्लेश, तनाव और शोक से पीड़ित रहना आदि करणों से वात का प्रकोप होता है और वात प्रकोप के कारण दर्द होता है, क्योंकि बिना वायु के दर्द हो ही नहीं सकता।

ऐसे रोगियों में आगे चलकर गृध्रसी वात (सायटिका) भी हो जाता है, जिसमें किसी भी एक पैर में कूल्हे से एड़ी तक, पीछे की तरफ एक ही नस में दर्द होना, पांव में झुनझुनी होना, पालथी (सुखासन) लगाकर बैठने से पैर का सो जाना, बैठने के बाद फिर पांव लम्बा करने की इच्छा होना, खड़े होने, चलने, बैठने में दर्द बढ़ना व लेटने से आराम होना आदि लक्षण मिलते हैं।

चिकित्सा : मुख्य रूप से यह रोग वातरोगाधिकार का है। रोग का स्थान कटिप्रदेश तथा कशेरुका अस्थि है, अतः जिन कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है, उन कारणों से बचना अत्यन्त आवश्यक है। बचाव करते हुए निम्नलिखित चिकित्सा लाभ न होने तक करनी चाहिए।

* श्रंगभस्म एवं वात गजेन्द्रसिंह 10-10 ग्राम, अजमोदादि चूर्ण एवं अश्वगन्धादि चूर्ण 50-50 ग्राम, सबको मिलाकर 30 पुड़िया बना लें। सुबह-शाम 1-1 पुड़िया दूध के साथ लें। इसके बाद त्रयोदशंग गुग्गल 2-2 गोली पानी के साथ सुबह-शाम लें। महानारायण तेल, पंच गुण तेल, महामाष तेल 50-50 मि.ली. और लोबान तेल 10 मि.ली. लेकर मिला लें और शीशी में भर लें। सोने से पहले इस तेल को कमर पर लगाकर मालिश करें।

कब्ज न रहने दें, इसके लिए शाम को भी निश्चित समय पर शौच के लिए अवश्य जाया करें। यदि कब्ज रहता हो तो त्रिफला चूर्ण एक चम्मच कुनकुने गर्म पानी के साथ सोते समय ले लिया करें।

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