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कौन हैं अण्णा हजारे?

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, मंगलवार, 16 अगस्त 2011 (18:18 IST)
BBC
- मोहन लाल शर्मा (दिल्ली)

भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले 72 साल के सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे का मूल नाम किसन बापट बाबूराव हजारे हैं। अण्णा हजारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक है जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं।

उनका जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव के एक किसान परिवार में हुआ। पिता का नाम बाबूराव हजारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है। अण्णा के छह भाई हैं। अण्णा का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा।

परिवार की आर्थिक तंगी के चलते अण्णा मुंबई आ गए। यहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। कठिन हालातों में परिवार को देखकर उन्होंने परिवार का बोझ कुछ कम करने के लिए फूल बेचने वाले की दुकान में 40 रुपए महीने की पगार पर काम किया।

सेना में भर्ती : वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अण्णा 1963 में सेना की मराठा रेजिमेंट में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे।

1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अण्णा हजारे खेमकरण सीमा पर तैनात थे। 12 नवंबर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए। इस घटना ने अण्णा की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया।

घटना के 13 साल बाद अण्णा सेना से रिटायर हुए, लेकिन अपने जन्म स्थली भिंगारी गांव भी नहीं गए। वे पास के रालेगांव सिद्धि में रहने लगे। 1990 तक हजारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हुई, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि को अपनी कर्मभूमि बनाया और विकास की नई कहानी लिख दी।

आदर्श गांव : इस गांव में बिजली और पानी की जबरदस्त कमी थी। अण्णा ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और खुद भी इसमें योगदान दिया।

अण्णा के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई। इसके बाद उनकी लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ।

1990 में 'पद्मश्री' और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित अण्णा हजारे को अहमदनगर जिले के गांव रालेगांव सिद्धि के विकास और वहां पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है।

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'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन'
अण्णा की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी जब उन्होंने 1991 में 'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन' की शुरुआत की।

महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। अण्णा हजारे ने उन पर आय से ज्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था।

सरकार ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन हारकर दो मंत्रियों सुतर और शिवांकर को हटाना ही पड़ा। घोलाप ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर दिया।

लेकिन अण्णा इस बारे में कोई सबूत पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने की जेल हुई। हालांकि उस वक्त के मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत के बाद छोड़ दिया।

एक जांच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को निर्दोष बताया। लेकिन अण्णा हजारे ने कई शिवसेना और भाजपा नेताओं पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए।

सरकार विरोधी मुहिम : 2003 में अण्णा ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के कथित तौर पर चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के ‍खिलाफ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए।

हजारे का विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। आयोग ने जब सुरेश जैन के खिलाफ आरोप तय किए तो उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया।

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1997 में अण्णा हजारे ने सूचना के अधिकार कानून के समर्थन में मुहिम छेड़ी। आखिरकार 2003 में महाराष्ट्र सरकार को इस कानून के एक मजबूत और कड़े मसौदे को पास करना पड़ा।

बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लिया और 2005 में संसद ने सूचना का अधिकार कानून पारित किया। कुछ राजनीतिज्ञों और विश्लेषकों की मानें, तो अण्णा हजारे अनशन का गलत इस्तेमाल कर राजनीतिक ब्लैकमेलिंग करते हैं और कई राजनीतिक विरोधियों ने अण्णा का इस्तेमाल किया है।

कुछ विश्लेषक अण्णा हजारे को निरंकुश बताते हैं और कहते हैं कि उनके संगठन में लोकतंत्र का नामोनिशां नहीं है।

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