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देश का माहौल बदलने की जरूरत

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हमें फॉलो करें आतंकवाद दिल्ली धमाके खुफिया तंत्र
, रविवार, 14 सितम्बर 2008 (22:30 IST)
-प्रकाशसिंह, पूर्व आईपीएस और आंतरिक सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ

अगर दिल्ली में हुए ताजा विस्फोटों के पीछे चूक की बात करना शुरू करें तो बात हो जाएगी, सुरक्षा इंतजाम की, खुफिया तंत्र की और सतर्कता की। ...लेकिन एक बात स्पष्ट है कि आतंक की घटनाएँ सिर्फ तैनाती से नहीं रुक सकतीं। इसके लिए देश में माहौल को बदलना होगा और हर दिलोदिमाग में यह बात बैठानी होगी कि यह सरकार कार्रवाई करना चाहती है।

BBC
अगर कुछ हुआ तो दोषी लोगों को पकड़ा जाएगा और उन्हें सजा दी जाएगी। इस समय जो माहौल है, उसमें तो यह भी तय नहीं है कि जो घटना को अंजाम देगा उसे पकड़ा जाएगा। तय नहीं कि अगर पकड़ भी लिया गया तो सजा भी दी जाएगी और अगर सजा हो भी गई तो उसका कार्यान्वयन भी किया जाएगा। अब तक तो आतंक से जुड़ी घटनाओं में सरकार कमजोर ही साबित हुई है।

संकेत-दिल्ली में जिन जगहों पर हमले हुए हैं, वह एक खास तरह के संकेत देता है। इस बार हमला करने वालों ने कनॉट प्लेस, ग्रेटर कैलाश और करोल बाग जैसी जगहों को चुना है, जहाँ आमतौर पर पढ़े-लिखे और संपन्न लोग आते हैं।

...तो अब हमलावर पढ़े-लिखे लोगों को भी संकेत देना चाहते हैं कि अब वे भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि वे उन इलाकों में नहीं पहुँच सकते, जहाँ वे जाते रहे हैं। इन हमलों से तो हमलावरों के दुस्साहस का ही परिचय मिलता है। वे कहीं भी हमला कर सकते हैं और कभी भी हमला कर सकते हैं।

सख्त कानून की जरूरत : गृहराज्यमंत्री शकील अहमद कह रहे हैं कि उनके पास सूचनाएँ थीं कि दिल्ली में आतंकी हमले हो सकते हैं और उसके बाद भी हमले हो गए। यह बहुत अफसोस की बात है कि खुफिया जानकारी के बाद भी राजधानी में हमले हो गए ऐसे मंत्री को तो अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।

इतने लोग मारे गए और आप अभी भी गृह मंत्रालय में बैठे हुए हैं। मैं इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि इस देश में एक सख्त आतंक विरोधी कानून की जरूरत है। मैं तो उन लोगों में से हूँ, जो मानते हैं कि पोटा जैसा कानून भी पुराना पड़ चुका है। जो घटनाएँ देश में हो रही हैं, उसे अब पोटा से भी नहीं निपटा जा सकता। दिक्कत यह है कि हम कार्रवाई इतनी देर से करते हैं, जब मर्ज बढ़ चुका होता है।
(बीबीसी से हुई बातचीत के आधार पर)

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