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रवीन्द्र संगीत को आत्मसात करने वाले पंकज मलिक

(दस मई : जन्मदिन)

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हमें फॉलो करें पंकज मलिक
सफलता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी जानेमाने संगीतकार पंकज मलिक 25 साल तक ‘न्यू थिएटर्स कलकत्ता’’ के साथ काम करते रहे जिससे वह करियर के शुरुआती दौर में जुड़े थे। रवीन्द्र संगीत से अपने करियर की शुरुआत करने वाले मलिक ने अभिनय में भी अपनी छाप छोड़ी थी।

रवीन्द्र संगीत में दिलचस्पी रखने वाले शशधर सेन बताते हैं, ‘‘गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के गीत ‘‘नेमेचे आज प्रोथोम बादल’’ की पहली कमर्शियल रिकॉर्डिंग से पंकज मलिक ने अपने करियर की शुरुआत की थी। रवीन्द्र संगीत को पंकज मलिक ने एक तरह से आत्मसात कर लिया था।’’

सेन कहते हैं कि यह रिकॉर्डिंग मलिक ने 1926 में कलकत्ता की एक कंपनी के लिए की थी और तब उनकी उम्र 18 साल की थी। यह एलबम हिट रहा और मलिक रवीन्द्र संगीत का एक जाना-माना नाम बन गए। इसके बाद उन्होंने रवीन्द्र संगीत के कई एलबम निकाले जिन्हें श्रोताओं ने बेहद पसंद किया।

वर्ष 1927 में वह तत्कालीन कलकत्ता के इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन से जुड़े और फिर आकाशवाणी में संगीतकार आर. सी. बोराल के साथ काम करने लगे। बोराल और मलिक का एक संगीतकार और कलाकार के तौर पर करीब 50 बरस का साथ रहा।

उन्होंने बांग्ला, हिन्दी, उर्दू और तमिल भाषा की फिल्मों के लिए संगीत दिया और फिल्म जगत के लिए उनका योगदान करीब 38 साल तक रहा जिसकी शुरुआत उन्होंने 1931 से की थी।

के.एल. सहगल, एसडी बर्मन, हेमंत कुमार, गीता दत्त और आशा भोसले को पसंद करने वाले मलिक ने अभिनय भी किया। अभिनय के सफर में उनके साथ केएल सहगल, पीसी बरूआ और कानन देवी रहे। पंकज मलिक को नितिन बोस और आरसी बोराल के साथ भारतीय सिनेमा में पार्श्वगायन की शुरुआत करने का भी श्रेय है।

भारतीय डाक सेवा ने वर्ष 2006 में पंकज मलिक की जन्म शताब्दी पर एक डाक टिकट जारी किया। इसी साल दस मई को दूरदर्शन ने मलिक पर एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया। करीब 50 साल पहले 1959 को जब दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी तब पंकज मलिक और वैजयंती माला ने एक विशेष कार्यक्रम पेश किया था।

10 मई 1905 को कोलकाता में जन्मे पंकज मलिक न केवल बांग्ला फिल्मों में बल्कि हिन्दी फिल्मों में भी संगीत के सशक्त हस्ताक्षरों में से एक थे। पिता से परंपरागत बांग्ला संगीत का शौक विरासत में पाने वाले मलिक ने दुर्गादास बंधोपाध्याय से भारतीय शास्त्रीय संगीत की शुरुआती शिक्षा ली।

पढ़ाई पूरी करने के बाद वह दिनेन्द्र नाथ टैगोर के संपर्क में आए जो गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के भाई के पोते थे। उनके साथ रहते रहते मलिक की दिलचस्पी रवीन्द्र संगीत में हुई और जल्द ही गुरूदेव के गीतों को अपने सुरों से सजाने लगे।

1970 में उन्हें पद्मश्री और फिर 1972 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 19 फरवरी 1978 को इस संगीतकार ने अंतिम साँस ली।(भाषा)

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