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कर ले प्यार कर ले की कहानी घूमती है कबीर और प्रीत के बीच। यह दोनों के बीच की दुश्मनी के बीच पनपते प्यार की दास्तां है।
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बचपन से ही कबीर और प्रीत कुछ खतरनाक खेलों के जरिए अपने डर पर काबू पाने की कोशिश करते हैं। इसी कारण 8 साल के कबीर को किशोर घर में भर्ती करना पड़ता है और उसकी मां को अपना घर छोड़ना पड़ता है।
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धीरे-धीरे कबीर का स्वभाव और आक्रामक हो जाता है और उसकी मां को उसे संभालना और मुश्किल होता जाता है। 12 साल तक कई शहरों में घुमने के बाद अंतत: कबीर का परिवार फिर अपने पुराने घर लौट आता है क्योंकि कबीर की नानी बीमार है। कबीर और प्रीत की फिर मुलाकात होती है।
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प्रीत का यह मानना है कि जब भी वह एक दूसरे के करीब आते हैं उन्हें कुछ ना कुछ तकलीफों का सामना करना पड़ता है इसलिए वह कबीर से दूरी बना लेती है जबकि कबीर की सोच इससे बिल्कुल उलट है।
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कबीर की प्रीत उपेक्षा करती है और उसका ईगो हर्ट होता है। धीरे-धीरे यह ईगो की लड़ाई बन जाती है। क्या दोनों ईगो से ऊपर उठ कर अपने प्यार को देख पाएंगे? क्या प्रीत महसूस करेगी कि दोनों का साथ होना ही फायदेमंद है? क्या वे प्यार करने की हिम्मत दिखा पाएंगे?