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जोकोमन

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बैनर : वाल्ट डिजनी स्टूडियो मोशन पिक्चर्स
निर्देशक : सत्यजीत भटकल
संगीत : शंकर अहसान लॉय
कलाकार : दर्शील सफारी, अनुपम खेर, मंजरी फडणीस, दत्तार, जय व्यास

11 वर्ष के कुणाल (दर्शील सफारी) के माता-पिता की मौत एक दुर्घटना में हो जाती है। कानूनी तौर पर कुणाल की प‍रवरिश की जिम्मेदारी चाचा देशराज (अनुपम खेर) को सौंपी जाती है, जिसकी नीयत साफ नहीं है। चाचा के घर में कुणाल के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है।

देशराज चाहता है कि किसी तरह कुणाल को वह घर से बाहर निकाल दे ताकि कुणाल की सारी चीजें उसकी हो जाए। आखिरकार वह इस काम में सफल हो जाता है। कुणाल को सड़क पर वह छोड़ देता है।

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दस वर्ष की उम्र में ही कुणाल जीवन की कटु सच्चाइयों का अनुभव करता है। मुंबई की सड़कों पर भटकते हुए कुणाल की मुलाकात किट्टू (मंजरी फड़णीस) से होती है जो उसकी मदद करती है। कुणाल को किट्टू अपना छोटा भाई मानते हुए उसकी हर तरह से रक्षा करती है।

कुणाल को अपने पिता की सीख याद आती है ‘आप तब तक शक्तिशाली हैं जब तक आप यह मानते हैं कि आपके अंदर ताकत है। यदि आपको अपने आप पर यकीन है तो सब कुछ संभव है। जिंदगी के सामने चुनौती उभरती है तब इंसान अपने अंदर की ताकत को खोजकर एक सुपर हीरो की तरह उभरता है।‘

कुछ समय बाद कुणाल को अहसास होता है कि उसके अंदर कुछ शक्तियाँ हैं जो आम इंसानों में नहीं होती हैं। एक भूतहा मकान में उसकी मुलाकात एक जादूकर (अनुपम खेर) से होती है जिसे सब पागल समझते हैं और उसके नजदीक जाने से डरते हैं।

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वास्तव में वह जादूगर एक वैज्ञानिक है जो शोधकार्य में लगा हुआ है। इसी के चलते उसने अपना अलग हुलिया बना रखा है। बढ़ी हुई दाढ़ी और बाल, डरावना चेहरा और अजीबोगरीब आँखों के कारण वह बेहद डरावना दिखाई देता है।

वह कुणाल का दोस्त बनकर और उसकी सुपरहीरो जैसी शक्तियों के आधार पर उसे जोकोमन बनाता है। जोकोमन बनकर कुणाल क्या कारनामे करता है, इसके लिए देखना होगी फिल्म।

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