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बुद्ध का वैराग्य भाव

गौतम बुद्ध का गृह त्याग

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वैराग्य भाव : बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा, लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे बुद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्‍याति समूचे संसार में अनंतकाल तक कायम रहेगी।

राजा शुद्धोदन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आस-पास भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहां पर नाच-गाना और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई।

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दास-दासी उनकी सेवा में रख दिए गए, लेकिन... एक दिन वसंत ऋ‍तु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर करने निकले। रास्ते में सांसारिक दुखों को देखकर विचलन हुआ और सब कुछ बदल गया।

गृह त्याग : मन में वैराग्य भाव तो था ही, इसके अलावा क्षत्रिय शाक्य संघ से वैचारिक मतभेद के चलते संघ ने उनके समक्ष दो प्रस्ताव रखे थे। वह यह कि फांसी चाहते हो या कि देश छोड़कर जाना। सिद्धार्थ ने कहा कि जो आप दंड देना चाहें। शाक्यों के सेनापति ने सोचा कि दोनों ही स्थिति में कौशल नरेश को सिद्धार्थ से हुए विवाद का पता चल जाएगा और हमें दंड भुगतना होगा तब सिद्धार्थ ने कहा कि आप निश्चिंत रहें, मैं संन्यास लेकिन चुपचाप ही देश से दूर चला जाऊंगा। आपकी इच्छा भी पूरी होगी और मेरी भी।

तब आधी रात को सिद्धार्थ ने अपनी पत्नी यशोधरा और बेटे राहुल को देखा जो सो रहे थे। दोनों के मस्तक पर हाथ रखा और फिर धीरे से किवाड़ खोलकर महल से बाहर निकले और घोड़े पर सवार हो गए।

रातोरात वे 30 योजन दूर गोरखपुर के पास अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे। वहां उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे और केश काटकर खुद को संन्यस्त कर दिया। उस वक्त उनकी आयु थी 29 वर्ष।

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