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निरर्थक है मूल्यविहीन सफलता

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-प्रेमपाल शर्मा

जुलाई 2009 के शुरू में डिस्कवरी चैनल पर पटना के मशहूर कोचिंग सेंटर सुपर थर्टी पर एक डॉक्यूमेंटरी प्रसारित थी। सबको पता है कि यह कोचिंग सेंटर पिछले कई वर्षों से पटना में गरीब और पिछड़े बच्चों को आईआईटी के लिए कोचिंग देता रहा है और अद्वितीय सफलता के झंडे गाड़ चुका है, लेकिन डॉक्यूमेंटरी पूरी हुई तो पता चला कि इस बार यह खबरों में दूसरे कारणों से भी है और वह है इसे अचानक बंद करने की घोषणा।

बंद करने का कारण यह रहा है कि इस साल इसी कोचिंग सेंटर से सफल दो-तीन छात्रों ने वहीं के एक अन्य संस्थान के तथाकथित बहकावे, फुसलावे या लालच में यह कह दिया कि उन्होंने सुपर थर्टी से कोचिंग नहीं ली या सुपर थर्टी ने उनकी कामयाबी को अपने खाते में डाला है, जो वास्तव में उन्होंने अपनी मेहनत से हासिल की है।

ऐसा ही कुछ! इस तरह की घोषणाएँ सुपर थर्टी की साख पर बट्टा लगा रही थी। इन आरोपों और आलोचनाओं से संचालक इतने व्यथित हुए कि उन्होंने संस्थान ही बंद कर दिया। बंद करने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि हमने इन्हें आईआईटी में चुने जाने लायक तो बनाया, लेकिन ईमानदारी जैसे मूल्य देने में हम असफल रहे और जब तक ऐसे मूल्य न हों, आईआईटी की सफलता का कोई अर्थ नहीं है।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पिछले वर्षों में ज्यादातर कोचिंग संस्थान ऐसी हेराफेरी में लिप्त पाए गए हैं। अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए बढ़-चढ़कर उन छात्रों के फोटो छापे जो प्रतियोगी परीक्षाओं में अव्वल आए थे। वे वहाँ पढ़े नहीं बल्कि एकाध घंटे की सलाह के लिए ही कभी-कभार वहाँ आए थे। कभी-कभी पैसे का लालच देकर भी, न छात्र को ऐतराज न माँ-बाप को। एक हस्ताक्षर करने के जब लाख रुपए मिल जाएँ तो आईआईटी की फसल तो उसी दिन से कटनी शुरू हो गई।

तेज-तर्रार अव्वल आने वाली विशेषकर हिन्दी प्रांतों की नई पीढ़ी इसी मूल्यहीनता की तरफ बढ़ रही है। अपनी प्रतिभा के बूते, मेहनत से आईआईटी कैट, सिविल सेवा में चुना जाना अच्छी बात है लेकिन वे किसी मूल्य की खातिर समाजसेवा में जुटेंगे या देश के लिए त्याग करेंगे, ऐसा सोचना भी फिजूल है। यहाँ तक कि ये सफलताएँ देश के भले की तो छोड़ो उनको और बड़े काले कारनामे करने की तरफ उकसाती हैं।

अपनी सफलता के अहं में आगे बढ़ते ये अपने माँ-बाप को भी पीछे छोड़ते कब सदा के लिए विदेश का रास्ता ले लें, कोई नहीं जानता।

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