भगवती दुर्गा की उपासना का पर्व
नवसंवत्सर के साथ वासंतिक नवरात्रि भी प्रारंभ हो गए है। जिसमें भगवती नवदुर्गा की उपासना का विशेष महत्व शास्त्रों ने बताया है। यद्यपि 12 महीनों में प्रत्येक महीने का शुक्ल पक्ष नवरात्रि का पक्ष माना गया है लेकिन शारदीय नवरात्रि और वासंतिक नवरात्रि भगवती दुर्गा की महा उपासना के पर्व हैं। वसंत ऋतु में जहां प्रकृति में नई अंगड़ाई आ रही होती है पुराने पत्ते झड़ कर वृक्ष एवं वनस्पतियों में नई कौकिलें फूटने लगती हैं वृक्ष फूल और फलों से लद जाते हैं। उसी प्रकार से जीव एवं जंतु जगत में भी इस ऋतु में नया परिवर्तन आता है प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ होने के कारण सारा धर्म आचरण एवं अनुशासन इसी के आधीन होता है। भारतीय ऋषियों ने अपनी साधना एवं चिंतन के बल पर वसंत ऋतु के प्रारंभ में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा जिस दिन से संसार में सृष्टि प्रारंभ हुई नवरात्रि उपासना के माध्यम से भगवती दुर्गा की आराधना का क्रम प्रारंभ किया जो सनातन रूप से चला आ रहा है। इस आराधना उपासना के द्वारा मनुष्य के जीवन में नई शक्ति स्फूर्ति आत्मसंयम, बल, तेज सहित अनेक विरोट गुणों का प्रार्दुभाव हो जाता है। दुर्गा सप्तशती में इन तीन शक्तियों में बारे में 'एं कारी सृष्टि रूपायै ह् कारी प्रतिपादिका क्लीं कारी कामरूपिण्यै बीज रूपे नमोऽस्ते' अर्थात् एं महाकाली का बीज मंत्र है इसी से जगत की उत्पति होती है और इसी में जगत समाहित हो जाता है। अतः सृष्टि को उत्पन्न करने वाली शक्ति ही महाकाली है। तथा महालक्ष्मी रूप में हृ शक्ति ही जगत का परिपालन करती है। तथा संहारिक शक्ति के रूप में महासरस्वती जो क्लीं शक्ति के माध्यम से संपूर्ण जगत को मोहित कर उसकी दिशा बदल देती है अथवा संहार कर देती है। इन तीनों शक्तियों का जो एक रूप है उसे आदि शक्ति कहते हैं और भगवती पार्वती के रूप में अवतरण क्रम में उन्हीं के नौ स्वरूपों की उपासना एवं नौ शक्तियों की आराधना नवरात्रि उपासना कहलाती है। वासंतिक नवरात्रि पर शक्ति पीठों एवं सनातन धर्म मंदिरों में लोग आराधना उपासना के साथ-साथ अपने घरों में भी शक्ति आराधना उपासना पूरे नौ दिनों तक करते हैं।