छोटी उम्र काम बड़े
कुमार दुलीपसिंहजी
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, ससेक्स, हिंदू व इंग्लैंड
दाएँ हाथ के बल्लेबाज, लेग ब्रेक गेंदबाज और श्रेष्ठ स्लिप क्षेत्ररक्षक।
दुलीपसिंहजी जिन्हें कि क्रिकेट की दुनिया में दुलीप और उनके इंग्लैंड में क्रिकेट मित्र स्मिथ के नाम से जानते हैं, जो कि महान रणजीतसिंह के भतीजे भी थे, एक बहुत ही शानदार, यादगार, लेकिन संक्षिप्त क्रिकेट कॅरियर के स्वामी रहे। क्रिकेट के मैदान पर उनकी बल्लेबाली की अदा, सौम्यता और क्षमता उनके काल की एक निराली घटना थी।
शारीरिक तौर पर वह बहुत ही पतले-दुबले, लेकिन मैदान पर अद्वितीय चपलता लिए हुए एक खिलाड़ी थे। गेंद को शीघ्रता से देखने की उनकी क्षमता उनके शक्तिशाली और अफर्टलेस स्ट्रोक खेलने की दक्षता में चार चाँद लगाती थी।
अपने इंग्लैंड प्रवास के स्कूल के दिनों में वह लगातार तीन वर्ष चेल्टेमहेम के लिए खेले और अंतिम वर्ष में उन्होंने उसकी कप्तानी भी की। विस्डन ने उन्हें एक बहुत ही परिपक्व बल्लेबाज भी माना। उन्होंने अपना प्रथम श्रेणी क्रिकेट जीवन 1927 में यॉर्कशायर के विरुद्ध 101 रन बनाकर शुरू किया और फिर 254 नाबाद रन बनाए, जो कि विश्वविद्यालय के लिए कई दशकों तक एक रिकॉर्ड था।
1929-1931 के तीन क्रिकेट सत्रों में उन्होंने 55 के औसत से कुल 7793 रन बनाए, जो कि किसी भी इंग्लिश खिलाड़ी से अधिक थे। 1930 में उन्होंने नोर्थेमशायर के विरुद्ध खेलते हुए एक ही दिन में 333 का आँकड़ा छुआ जो कि आज भी एक काउंटी रिकॉर्ड है। अपने चाचा रणजीतसिंह की ही तर्ज पर उन्होंने उसी सत्र में इंग्लैंड के लिए अपने टेस्ट जीवन का पहला टेस्ट खेलते हुए ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध लॉर्डस में 173 रनों की विशाल व अविस्मरणीय पारी खेली।
ससेक्स के लिए दुलीप ने सफलतापूर्वक कप्तानी का निर्वाह किया, लेकिन 1932, अगस्त में यॉर्कशायर के विरुद्ध एक मैच में खेलते हुए अचानक उनका स्वास्थ्य बिगड़ा और उनका पूरा ग्रीष्मकालीन सत्र अस्वस्थता की वजह से खराब गया। उस वर्ष के अंत में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध दौरे पर उनका इंग्लैंड की टीम में चयन भी हुआ, लेकिन खराब स्वास्थ्य ने एक बार फिर उनके असाधारण, प्रतिभाशाली क्रिकेट जीवन को असामयिक रूप से हमेशा के लिए 27 वर्ष की उम्र में ही विराम तक पहुँचा दिया।
58 के औसत से उन्होंने 12 टेस्ट मैचों में 5 अर्द्धशतक और 3 शतक लगाते हुए कुल 995 रन बनाए। 50 प्रथम श्रेणी शतक भी जमाए। तीन बार उन्होंने एक ही मैच में 2 शतक लगाए। अपने सक्रीय क्रिकेट जीवन से निवृत्त होने के बाद उन्होंने भारत में आकर भी कुछ मैत्री मैच खेले। वह ऑस्ट्रेलिया में भारत के हाईकमिश्नर बने और फिर भारत लौटकर ऑल इंडिया काउंसिल के अध्यक्ष भी मनोनीत हुए। 1959 में उनकी मृत्यु के दो वर्ष बाद उनके क्रिकेट में महान योगदान के लिए अंतरक्षेत्रीय स्पर्धा दिलीप ट्रॉफी का जन्म हुआ, जो आज तक भारत में एक प्रतिष्ठित घरेलू स्पर्धा के रूप में जानी जाती है।
टेस्ट रिकॉर्ड : 12 टेस्ट, 19 पारियाँ, 2 नॉट-आउट, 173 उच्चतम स्कोर, 995 रन, 58.52 औसत, 3 शतक, 5 अर्द्धशतक, 10 कैच, 6 गेंदे, 7 रन, 0 विकेट
प्रथम श्रेणी कॅरियर रिकॉर्ड (1924-1932) : 205 मैच, 333 पारियाँ, 23 नॉट-आउट, 333 उच्चतम स्कोर, 15485 रन, 49.95 औसत, 50 शतक, 256 कैच, 1345 रन, 28 विकेट, 48.03 औसत, 4-49 सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी