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गुलाबी कोंपलों के पास खिलते पीले फूल

इस बार गुलाबी कोंपलें ब्लॉग की चर्चा

हमें फॉलो करें गुलाबी कोंपलों के पास खिलते पीले फूल

रवींद्र व्यास

WD
एक ब्लॉग है गुलाबी कोंपलें। इसे खोलते ही इसका रूप-रंग ध्यान खींचता है। हैडर पर कुछ गुलाब अपनी सुंदरता में खिलते-मुस्कराते नजर आते हैं। ताजा हरी पत्तियाँ धूप में प्रसन्न नजर आती हैं। और गुलाबी फूलों पर कुछ पीली तितलियाँ उड़ती दिखाई देती हैं। पूरा ब्लॉग गुलाबी रंग की रूमानियत से सराबोर दिखाई देता है। इसके ब्लॉगर हैं विनय प्रजापति। वे कवि हैं और इस ब्लॉग पर वे अपनी कच्ची-पक्की कविताएँ पोस्ट करते रहते हैं। ज्यादातर कविताएँ प्रेम कविताएँ हैं। अकेलेपन की, उदासी की, खालीपन की। बारिशों की, बूंदों की, पेड़ों की, पत्तों की। यादों की और आहों की।

अब चूँकि ये कोंपलें है तो जाहिर है उनकी नाजुकता भी होगी, स्निग्धता भी होगी। गुलाबी हैं इसलिए इश्क और मोहब्बत की रूमानी बातें भी होंगी। और इसीलिए इन कविताओं में खयाल हैं, ख्वाब हैं और ख्वाहिशें हैं। तमन्नाएँ हैं और इल्तिजा है। बहुत छोटी छोटी बातें हैं, जिनमें इस कवि के भाव हैं और कल्पनाएँ हैं। जैसे इस छोटी सी कविता एक ख्वाब पर गौर करें-

देखो जरा
स्याह रात पे चाँद का पैबंद
कितना खिल रहा है
मेरे चाँद पे
सितारों वाला लिबास
जितना खिल रहा है।

विनय की कविताएँ पढ़ो तो लगता है ये गुलजार जैसे शायरों को खूब पढ़ता होगा। इसमें कल्पना की जो उडा़न है वह गुलजार की याद दिलाती है। इसमें तुकबंदी भी है लेकिन अपनी बात को कल्पनाशील ढंग से कहने की एक कोशिश भी है। लेकिन अक्सर ये कविताएँ उच्छवास लगती हैं, भावो्च्छवास लगती हैं। यह आह की और ओह की कविताएँ हैं। भावुकता की कविताएँ हैं। विचारों का स्पर्श नहीं मिलेगा इनमें बस भाव ही भाव मिलेंगे। इसीलिए वे अपनी बात को बारिश, बूंदें , पत्ते, रात, चाँद और तारे के जरिए भावुक होकर कहते हैं।

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WD
अपनी एक कविता जहाँ उस रोज देखा था तुम्हे में वे दिल के जख्म की बात करते हैं जो बर्फ की तरह जम गए हैं और उदासियों की नज्म उन्हें गरमाए रखती हैं। उनकी कविताओं में बड़ी उदास दोपहर होती है और जिसमें कमरे से लेकर उनका दिल तक खाली है और यादों का धुँधला काफिला गुजर रहा है। सड़कों के साथ चलते हुए उनकी आँखों में खुशबू अकसर सोई रहती है और आँख भरती है तो सारा मंजर ही महक उठता है।

वे किसी के बिना लम्हों की गलियों में भटकते हैं और सदियों का फासला तय करते हैं। वे बारिश जैसी हो तुम कविता में कहते हैं कि खिली हुई शाम की बिखरी हुई धूप में बारिश जैसी हो तुम और लाल फूल उसकी यादों की तरह खिले हुए हैं। एक ऐसी शाम भी आती है जिसमें कवि और शाम देर तक बैठे रहते हैं और शाम उनसे अनकही बातें कहती रहती है। दुनिया थम सी जाती है और उनका मन बहकने लगता है।

कुल मिलाकर उनकी ये कविताएँ भावुकता की कविताएँ हैं। इनमें कोई बनाव-श्रृंगार नहीं है। शैली या कोई शिल्प नहीं है। बस अपनी बात को कहने का एक भावुकता भरा लहजा है। अधिकांश कविताओं में उनका यह स्थायी भाव है। एक कविता में वे कहते हैं कि किसी को देखकर ही वे जान पाते हैं कि इल्म क्या है और जन्म क्या है। और एक कविता में वे यह भी कहते हैं कि साड़ी में उड़स के चाबियाँ मेरे घर चली आओ यही इल्तिजा है तुमसे।

तो यदि आप भावोच्छवास या भावुकता भरी कविताएँ पढ़ना चाहते हैं तो इस ब्लॉग पर जाएँ। ये कविताएँ गुलाबी कोंपलें के पास खिले पीले फूलों जैसी हैं। अच्छी लगेंगी। ये रहा उसका पता-

http://pinkbuds.blogspot.com/

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