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ज्ञानदत्‍त पांडेय की मानसिक हलचल

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jitendra

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ब्‍लॉग-चर्चा में इस बार हम बात करने वाले हैं ज्ञानदत्‍त पांडेय की मानसिक हलचलों के बारे में। ब्‍लॉग लेखक ज्ञानदत्‍त पांडेय की तमाम मानसिक हलचलों का लेखा-जोखा है, हिंदी के इस जाने-माने ब्‍लॉग में, जो पाठकों के बीच खासा लोकप्रिय है।

फरवरी, 2007 में इस ब्‍लॉग का सफर शुरू हुआ। ज्ञानदत्‍त जी पेशे से उत्‍तर-मध्‍य रेलवे में सी.पी.टी.एम. के पद पर कार्यरत हैं और फिलहाल गंगा तट पर इलाहाबाद में बसे हैं। वे मूलत: लेखक नहीं हैं, लेकिन उनका ब्‍लॉग पढ़कर ऐसा लगता नहीं कि लिखने से उनका कोई बहुत पुराना नाता नहीं होगा। वास्‍तव में उनके लेखन की शुरुआत ब्‍लॉग के माध्‍यम से ही हुई। ‘ज्ञानदत्‍त पांडेय की मानसिक हलचल’ आलोक पुराणिक के भी पसंदीदा ब्‍लॉगों में से एक है।

इस ब्‍लॉग की खासियत इसकी विविधता है। तरह-तरह के उनके रोजमर्रा के किस्‍सों और निजी अनुभवों से लेकर राजनीति, अर्थशास्‍त्र, तकनीक, ब्‍लॉगरी, धर्म और हास्‍य व्‍यंग्‍य तक की रचनाएं आपको यहाँ मिल जाएँगी।

मानसिक हलचलें हमेशा ही रहती हैं और यह ब्‍लॉग भी प्रतिदिन अपडेट होता है। हर दिन आपको यहाँ कुछ नया रोचक पढ़ने को मिल सकता है। सिर्फ हास्‍य और रोचकता ही नहीं, कभी-कभी वे दार्शनिक मसलों पर भी बात करते दिखते हैं। अभी हाल की एक पोस्‍ट ‘कौन बर्बर नहीं है’ में वे लिखते हैं -
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‘प्रत्येक सभ्यता किसी-न-किसी मुकाम पर जघन्य बर्बरता के सबूत देती है। प्रत्येक धर्म-जाति-सम्प्रदाय किसी-न-किसी समय पर वह कर गुजरता है, जिसको भविष्य के उसके उत्तराधिकारी याद करते संकोच महसूस करते हैं। इसलिये जब कुछ लोग बर्बरता के लिये किसी अन्य वर्ग को लूलूहाते (उपहास करते) हैं तो मुझे हंसी आती है।

बहुत पढ़ा है हिटलर की नात्सी बर्बरता के बारे में। संघ के बन्धु इस्लाम की आदिकालीन बर्बरता के बारे में अनवरत बोल सकते हैं। नरेन्द्र मोदी को दानवीय कहना तो जैसे फैशन नैतिक अनुष्ठान है। उनके चक्कर में सारे गुजराती बर्बर बताये जा रहे हैं। यहूदियों पर किये गये अत्याचार सर्वविदित हैं। ईसाइयत के प्रारम्भ में यहूदी शासकों ने भी अत्याचार किये। कालांतर में ईसाइयत के प्रचार-प्रसार में भी पर्याप्त बर्बरता रही। हिन्दू धर्म में अस्पृश्‍यता, जाति और सामंतवाद, नारी-उत्पीड़न, शैव-वैष्णव झगड़े आदि के अनेक प्रकरणों में बर्बरता के प्रचुर दर्शन होते हैं।

उनकी सबसे ताजातरीन पोस्‍ट डॉ. वॉटसन के उस नस्‍लभेदी बयान के बारे में हैं, जिसमें वे कहते हैं कि अश्‍वेत लोग श्‍वेतों के मुकाबले कम बुद्धिमान होते हैं। बहुत सीधे-सुलझे तरीके से ऐसे तमाम मुद्दों पर वे अपना मत स्‍पष्‍ट करते हैं।

ज्ञानदत्‍त इंटरनेट के इस नए आविष्‍कार को एक वरदान की तरह मानते हैं। उनका कहना है कि ब्‍लॉग की दुनिया में पेशेवर साहित्‍यकारों और लेखकों की तुलना में ऐसे लोग ज्‍यादा बेहतर काम कर रहे हैं, लिखना जिनका पेशा नहीं है। ऐसे लोग, जो अगर ब्‍लॉग नहीं होता, तो कहीं भी नहीं लिख रहे होते। हिंदी में दलवाद बहुत ज्‍यादा है और हिंदी लेखन की दुनिया थोड़ी भी है।
उनकी सबसे ताजातरीन पोस्‍ट डॉ. वॉटसन के उस नस्‍लभेदी बयान के बारे में हैं, जिसमें वे कहते हैं कि अश्‍वेत लोग श्‍वेतों के मुकाबले कम बुद्धिमान होते हैं। बहुत सीधे-सुलझे तरीके से ऐसे तमाम मुद्दों पर वे अपना मत स्‍पष्‍ट करते हैं।
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ब्‍लॉग ने इस तरह के दलवाद को तोड़ा है। अब लोगों के पास अपना निजी स्‍पेस है, जिसे वे जिस तरह चाहें इस्‍तेमाल कर सकते हैं। वे जो चाहें लिख सकते हैं। यहाँ संपादक की कोई कलम उनके लेखन की चीरफाड़ करने को नहीं है। लेखक और संपादक भी वे स्‍वयं ही हैं।

ज्ञानदत्‍त पांडेय जी का मानना है कि ब्‍लॉग प्रिंट मीडिया की तुलना में ज्‍यादा सशक्‍त माध्‍यम है। एक ब्‍लॉगर को प्रिंट मीडिया के प्रति बहुत ज्‍यादा उत्‍साहित नहीं होना चाहिए।
ब्‍लॉगिंग का भविष्‍य भी काफी उज्‍जवल है। उनका कहना है कि बदलते वक्‍त के साथ एक माध्‍यम के रूप में ब्‍लॉगिंग का और भी ज्‍यादा विस्‍तार होगा। हालाँकि ब्‍लॉगिंग के माध्‍यम से हिंदी भाषा और साहित्‍य के विस्‍तार को लेकर वे बहुत ज्‍यादा उत्‍साहित नहीं हैं।

ज्ञानदत्‍त जी इस बात से सहमत नहीं हैं कि बहुत ज्‍यादा राजनीतिक और वैचारिक विमर्शों की बाहुल्‍य ब्‍लॉग में होना चाहिए। यह निजी किस्‍म की अनुभूतियों और निजी अभिव्‍यक्ति का मंच है, बहसों या लड़ाई का अखाड़ा नहीं।

ब्‍लॉग के बेहतर भविष्‍य के संकेत तो ब्‍लॉगिंग की तेजी से बढ़ती हुई संख्‍या दे ही रही है। बहुत से नए लोग इस सफर में जुड़ रहे हैं। फिलहाल आप ज्ञानदत्‍त पांडेय की मानसिक उलझनों में उलझें और सुलझें।

ब्‍लॉग - ज्ञानदत्‍त पांडेय की मानसिक हलच
URL - http://www.hgdp.blogspot.com/

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