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थोक मूल्य सूचकांक का छलावा

हमें फॉलो करें थोक मूल्य सूचकांक का छलावा
- विष्णुदत्त नाग

सरकार की मुद्रास्फीति की आँकड़ेबाजी या महँगाई के आँकड़ों की बाजीगरी समझ पाना आम लोगों के बूते की बात नहीं है। जिस प्रकार सरकार द्वारा सचाई छिपाने का खेल खेला जाता है, उसे देख और समझकर लोग निश्चित रूप से चकरा जाएँगे।

जनसाधारण यह जानकर हैरान है कि रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं,
  सूचकांक में वृद्धि का तात्पर्य है महँगाई की वृद्धि और महँगाई में वृद्धि का अर्थ है आम आदमी की खरीदने की क्षमता में कमी। 1993-94 में प्रचलित थोक मूल्यों के आधार पर 435 अलग-अलग वस्तुओं का लेखा-जोखा प्रति सप्ताह रखा जाता है      
लेकिन मुद्रास्फीति दशमलव की बैसाखी के सहारे धीरे-धीरे बढ़ती है। सदैव एक ही प्रश्न उठता है कि वास्तविक महँगाई और सरकारी आँकड़ों के बीच इतने विरोधाभास कैसे हैं? स्वयं रिजर्व बैंक के गवर्नर वायवी रेड्डी ने स्वीकार किया है कि सरकार द्वारा जारी किए मुद्रास्फीति के आँकड़े अवास्तविक हैं।

आँकड़ों के सहारे भ्रामक और मिथ्या उपचार करना तथा गहरी मनोवैज्ञानिक चालों के आधार पर मनमाने नियमों को बनाना आज की व्यवस्था का विशेष गुण है। आँकड़ों का एक खास अर्थ और उद्देश्य होता है और उनसे विशेष निष्कर्ष निकलते हैं, लेकिन ये दुधारी तलवार की तरह होते हैं, जिन्हें एकत्रित करने, पेश करने और इस्तेमाल करने में विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है। दीर्घकालिक या अंतिम आँकड़ों की तुलना अल्पकालिक या अंतरिम आँकड़ों से नहीं की जा सकती है।

मुद्रास्फीति के घटने से कीमतों का घटना या बढ़ना प्रतिबिंबित नहीं होता। मुद्रास्फीति के आँकड़ों के पीछे एक खतरनाक अवधारणा का छद्म रूप छिपा हुआ है, जो जनसाधारण को भ्रमित करता है। आम आदमी को मुद्रास्फीति की दर में गिरावट से यह आभास होने लगता है कि कीमतों के स्तर में गिरावट आई, लेकिन सचाई यह है कि कीमतों में बढ़त बदस्तूर जारी है।

पहले सरकार के मुद्रास्फीति को मापने के तरीके को समझ लें। मुद्रास्फीति को मापने के लिए थोक बिक्री मूल्य में हो रहे बदलाव को देखा जाता है। मापने की इस अवधि में एक सूचकांक होता है, जिसे थोक मूल्य सूचकांक कहा जाता है। ऐसे सूचकांक और महँगाई के बीच सीधा संबंध होता है।

सूचकांक में वृद्धि का तात्पर्य है महँगाई की वृद्धि और महँगाई में वृद्धि का अर्थ है आम आदमी की खरीदने की क्षमता में कमी। 1993-94 में प्रचलित थोक मूल्यों के आधार पर 435 अलग-अलग वस्तुओं का लेखा-जोखा प्रति सप्ताह रखा जाता है। इन 435 वस्तुओं में से प्रत्येक का अलग-अलग भार मुद्रास्फीति की गणना में शामिल होता है। केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय रोजमर्रा में प्रयोग की जाने वाले वस्तुओं के महत्व के अनुसार इनका भार तय करता है।

वर्तमान में सबसे ज्यादा भार लगभग 64 प्रतिशत शकर, स्टील और कपड़े आदि विनिर्मित वस्तुओं और 22.02 प्रतिशत भार दाल, फल-सब्जी जैसी प्राथमिक वस्तुओं को दिया जाता है। 14.22 प्रतिशत भार ईंधन और बिजली के लिए निर्धारित किया गया है। सरकार स्वयं स्वीकार कर चुकी है कि महँगाई मापने की गणना की इस खामी के चलते आम आदमी के मासिक व्यय का लगभग 70 फीसदी हिस्सा शामिल नहीं किया जाता।

जिन प्रमुख प्राथमिक वस्तुओं का मूल्य 40 से 60 प्रतिशत बढ़ा है, उनका भार केवल 22 प्रतिशत और प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्धा के कारण जिन विनिर्मित उत्पादों का मूल्य स्थिर या कम होता है। इसका भार लगभग 64 प्रतिशत है, यह सही स्थिति को परिलक्षित नहीं करता। इसी प्रकार ईंधन और बिजली का 14.22 प्रतिशत का भार पिछले ग्यारह वर्षों में ईंधन की कीमतों में हुई कई गुना वृद्धि को उजागर नहीं करता। अकेले 2007 में कच्चे तेल की कीमत 56 प्रतिशत बढ़ी, लेकिन थोक मूल्य सूचकांक यह दर्शाने में असफल रहा।

आम आदमी मुद्रास्फीति की इस प्रकार की आँकड़ेबाजी में निश्चित रूप से चकरा जाएगा
  केंद्रीय सांख्यिकी संगठन का तर्क है कि थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के आँकड़े देने वाली कंपनियाँ अस्थायी आँकड़ों को देने के बाद वास्तविक थोक मूल्य आधारित सूचकांक आँकड़ों को देने में विलंब करती हैं      
कि थोक मूल्य सूचकांक आज के सामान्य जीवन की सभी वस्तुओं को पूरी तरह नहीं माप पाता। सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान है, लेकिन यह सूचकांक की गणना से नदारद है। चिकित्सक और वकील की फीस, मकान का किराया, बच्चों की शिक्षा का शुल्क आम परिवार की मासिक व्यय का करीब आधा हिस्सा व्यय करता है, लेकिन सूचकांक इसके प्रति मूकदर्शक है।

सूचकांक की गणना में वस्तुओं के थोक मूल्यों को आधार बनाया जाता है, न कि खुदरा दामों को, जबकि सचाई यह है कि आम उपभोक्ता को थोक दामों पर वस्तुएँ नहीं मिलतीं। इसे सूचकांक की क्रूरता ही कहेंगे कि उसमें से कई वस्तुओं के दामों को शामिल किया जाता है, जिनका आम आदमी के दैनिक जीवन में कोई योगदान नहीं होता।

सरकार ने सूचकांक की गणना में गलतियों को पहचानकर उन्हें सही करने के लिए एक समिति गठित कर महँगाई को सही रूप से दर्शाने के लिए सूचकांक की गणना में फेरबदल करने के लिए सुझाव देने के लिए कहा था। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट भी दे दी है, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार सूचकांक की गणना में फेरबदल के लिए यह समय उपयुक्त नहीं समझती। महँगाई के आँकड़ों की बाजीगरी उजागर करने से सरकार फजीहत में पड़ जाएगी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार योजना आयोग द्वारा अभिजीत सेन की अध्यक्षता में गठित पैनल आधार वर्ष 1993-94 के बजाय 2004-2005 और 435 वस्तुओं के स्थान पर दो गुने से अधिक वस्तुओं को शामिल करने पर विचार कर रहा है। यह पैनल पिछले ग्यारह वर्षों में विभिन्न आवश्यक वस्तुओं की मूल्यवृद्धि और उपभोग परिवर्तन के अनुसार भार तय करेगा।

जनता को गुमराह करने के लिए मुद्रास्फीति के अस्थायी आँकड़े तो जारी कर दिए जाते हैं, लेकिन वास्तविक आँकड़े जनता के समक्ष आ ही नहीं पाते। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक 12 अप्रैल 2008 को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान मुद्रास्फीति की दर और वास्तविक आँकड़ों में एक प्रतिशत का अंतर था।

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा 15 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में मुद्रास्फीति अंतिम रूप से थोक मूल्य सूचकांक 8 प्रतिशत के बताई गई है, जबकि यह पहले 6.8 बताई गई थी। इसी प्रकार गत सप्ताह की मुद्रास्फीति दर 7.83 बताई गई है, लेकिन पिछले दो सालों का अनुभव यह बताता है कि 9-10 प्रतिशत हो तो कोई आश्चर्य नहीं।

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन का तर्क है कि थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के आँकड़े देने वाली कंपनियाँ अस्थायी आँकड़ों को देने के बाद वास्तविक थोक मूल्य आधारित सूचकांक आँकड़ों को देने में विलंब करती हैं। संशोधन को मुद्रास्फीति की गणना में शामिल खाद्यान्नों, विभिन्न उत्पादित वस्तुओं और चुनी हुई कुछ सेवाओं की गणना करनी होती है, इसके लिए विभिन्न स्रोतों से आँकड़े जुटाए जाते हैं। लेकिन कंपनियाँ बहुधा निर्धारित समय के पश्चात आँकड़े भेजती हैं। महँगाई के वास्तविक आँकड़े जारी करने में विलंब करके या न करके सरकार सचाई छिपाने के खेल तो खेल लेती है, लेकिन आम आदमी इस चतुराई को नहीं समझ पाता।
(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं।)

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