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दीपावली : पांच दिवसीय जगमगाता पर्व

दीपोत्सव : दीपदान का है विशेष महत्व

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स्वामी महेंद्रानं

दीपोत्सव के पावन अवसर पर हर तरफ खुशियों का महकता वातावरण हो जाता है। यह पर्व सभी पर्वों में सबसे बड़ा माना जाता है क्योंकि पांच दिन तक इस त्योहार की खुशियां बनी रहती है और माह भर पूर्व से इसे मनाने की तैयारी आरंभ हो जाती है। हर त्योहार की तरह इस पर्व की भी पौराणिक कथा है। हर दिन का विशेष महत्व है। आइए, जानते हैं पांच दिवसीय जगमगाते त्योहार की विशेषताएं :

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कार्तिक कृष्ण त्रयोदश
इसे 'धनतेरस' कहा जाता है। इस दिन चिकित्सक भगवान धन्वंतरी की भी पूजा करते हैं। पुराणों में कथा है कि समुद्र मंथन के समय धन्वंतरी सफेद अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे। धनतेरस को सायंकाल यमराज के लिए दीपदान करना चाहिए। इससे अकाल मृत्यु का नाश होता है। लोग धनतेरस को नए बर्तन भी खरीदते हैं और धन की पूजा भी करते हैं।

कार्तिक कृष्ण चतुर्दश
इसे 'नरक चतुर्दशी' या 'रूप चौदस' भी कहा जाता है। इस दिन नरक से डरने वाले मनुष्यों को चंद्रोदय के समय स्नान करना चाहिए व शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। जो चतुर्दशी को प्रातःकाल तेल मालिश कर स्नान करता है और रूप सँवारता है, उसे यमलोक के दर्शन नहीं करने पड़ते हैं। नरकासुर की स्मृति में चार दीपक भी जलाना चाहिए।

कार्तिक कृष्ण अमावस्य
इसे दीपावली कहा जाता है। इस दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही कुबेर की पूजा भी की जाती है। शुभ मुहूर्त में लक्ष्मीजी का पाना, सिक्का, तस्वीर अथवा श्रीयंत्र, धानी, बताशे, दीपक, पुतली, गन्ने, साल की धानी, कमल पुष्प, ऋतु फल आदि पूजन की सामग्री खरीदी जाती है। घरों में लक्ष्मी के नैवेद्य हेतु पकवान बनाए जाते हैं। शुभ मुहूर्त, गोधूलि बेला अथवा सिंह लग्न में लक्ष्मी का वैदिक या पौराणिक मंत्रों से पूजन किया जाता है।

प्रारंभ में गणेश, अंबिका, कलश, मातृका, नवग्रह, पूजन के साथ ही लक्ष्मी पूजा का विधान होता है। लक्ष्मी के साथ ही अष्टसिद्धियां- अणिमा महिला गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्या, ईशिता और बसिता तथा अष्टलक्ष्मी आदि, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य भोग और योग की पूजा भी करना चाहिए। इसके पश्चात महाकाली स्वरूप दवात तथा महासरस्वती स्वरूप कलम व लेखनी की पूजा होती है। बही, बसना, धनपेटी,लॉकर, तुला, मान आदि में स्वास्तिक बनाकर पूजन करना चाहिए। पूजा के पश्चात दीपकों को देवस्थान, गृह देवता, तुलसी, जलाशय, पर आंगन, आसपास सुरक्षित स्थानों, गौशाला आदि मंगल स्थानों पर लगाकर दीपावली करें। फिर घर आंगन में आतिशबाजी कर लक्ष्मीजी को प्रसन्न करना चाहिए।

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कार्तिक शुक्ल प्रतिपद
इसे गोवर्धन पूजा या अन्नकूट महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन गाय-बछड़ों एवं बैलों की पूजा की जाती है। गाय-बछड़ादि को तरह-तरह से श्रृंगारित किया जाता है। सायंकाल उन्हें सामूहिक रूप से गली-मोहल्लों में घुमाया जाता है और ग्वाल-बाल, विरह गान भी करते हैं। इस तिथि को बलि प्रतिपदा, वीर प्रतिपदा और द्युत प्रतिपदा भी कहा जाता है।

गोवर्धन पूजा के दिन महिलाएं शुभ मुहूर्त में घर आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाकर कृष्ण सहित उनकी पूजा करती हैं। इस महोत्सव में देवस्थानों पर चातुर्मास में वर्जित सब्जियों की संयुक्त विशेष सब्जी बनाई जाती है और छप्पन प्रकार के भोग तैयार कर भगवान को नैवेद्य लगाया जाता है। उसके पश्चात देवस्थलों से भक्त, साधु, ब्राह्मण आदि को सामूहिक रूप से प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है।

कार्तिक शुक्ल द्वितीय
इसे यम द्वितीया या भाई दूज कहा जाता है। इस दिन प्रातःकाल उठकर चंद्रमा के दर्शन करना चाहिए। यमुना के किनारे रहने वाले लोगों को यमुना में स्नान करना चाहिए। आज के दिन यमुना ने यम को अपने घर भोजन करने बुलाया था, इसीलिए इसे यम द्वितीया कहा जाता है। इस दिन भाइयों को घर पर भोजन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी बहन, चाचा या मौसी की पुत्री, मित्र की बहन के यहां स्नेहवत भोजन करना चाहिए। इससे कल्याण की प्राप्ति होती है।

भाई को वस्त्र, द्रव्य आदि से बहन का सत्कार करना चाहिए। सायंकाल दीपदान करने का भी पुराणों में विधान है।

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