Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

...और टल गई डायलिसिस

हमें फॉलो करें ...और टल गई डायलिसिस
52 साल की इस महिला के दोनों गुर्दों ने (एक्यूट रीनल फैल्योर) अचानक काम करना बंद कर दिया था। यह महिला परिवार में एक शादी के कार्यक्रम में शामिल होने गई थी तब इस समस्या ने एकाएक सिर उठा लिया। महिला यूं तो 5-6 सालों से उच्चरक्तचाप की मरीज थी और दवाए ले रही थी और अब तक इस वजह से कोई गंभीर लक्षण भी प्रकट नहीं हुूए थे। इस महिला की एकाएक भूख गायब हो गई और उसे मितली की शिकायत होने लगी। शादी में मौजूद अन्य मेहमानों को लगा कि इन्हें बदहजमी की वजह से यह समस्या हुई होगी। वहां कुछ घरेलू दवाएंभी आजमाई गईं लेकिन किसी का कोई असर नहीं हुआ। अगले दिन सुबह तक महिला की तबीयत और बिगड़ गई। उन्हें उल्टियां होने लगी साथ ही चेहरे और पूरे बदन पर सूजन होने लगी।
  डायलिसिस कराने से पहले उनके रिश्तेदारों ने हमसे संपर्क किया और पूछा कि डायलिसिस को टालने के लिए हमारे पास कोई इलाज है या नहीं? परिस्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखकर हमने बिना समय गवांए टेलिफोन पर ही मरीज को आर्सेनिक एएलबी और सॉलिडॉगो नामक दवाएं देन      


मूत्र नलिका में तेज जलन होने के साथ-साथ मूत्र की मात्रा भी खतरनाक ढंग से कम हो गई। चिकित्सक को दिखाने पर उसने खून और मूत्र की जांच की सलाह दी। जांच के नतीजों से स्पष्ट हो गया कि महिला के दोनों गुर्दो ने काम करना बंद कर दिया है। उसके रक्त में यूरिया का स्तर 86मिलीग्राम प्रति डीएल तथा सीरम क्रिअटेनिन स्तर 4.8 मिलीग्राम प्रति डीएल पाया गया था। दिन भर में उसका मूत्र 350 मिली लीटर से अधिक नहीं हो रहा था। उसे तत्काल अस्पताल में भर्ती करने के साथ इलाज शुरु किया गया। 24 घंटे तक इलाज चलाने के बाद भीस्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि सूजन में और इजाफा हो गया। अब मरीज को सांस लेने में भारीपन होने के साथ बैचेनी की शिकायत शुरु हो गई थी उसका रक्तचाप भी बढ़ने लगा था और स्थिति तेजी से काबू से बाहर होती जा रही थी। इस पर न्यूरोलॉजिस्ट ने हेमोडायलिसिस कराने की सलाह दी ताकि शरीर में हो रही क्षति को और आगे बढ़ने से रोका जा सके। डायलिसिस कराने से पहले उनके रिश्तेदारों ने हमसे संपर्क किया और पूछा कि डायलिसिस को टालने के लिए हमारे पास कोई इलाज है या नहीं? परिस्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखकर हमने बिना समय गवांए टेलिफोन पर ही मरीज को आर्सेनिक एएलबी और सॉलिडॉगो नामक दवाएं देने की सलाह दी। दवाएं देने के बाद 12 घंटों के बाद मरीज की स्थिति में थोड़ा फर्क आना शुरु हो गया और उसकी मूत्र की मात्रा भी बढ़ चली थी। दवाएं शुरु किए जाने के 36 घंटे बाद मूत्र की मात्रा में और इजाफा हो गया। 3-4 दिन में धीरे-धीरे उनकी हालत में काफी सुधार नजर आने लगा। सूजन उतर चुकी थी और मूत्र की मात्रा भी सामान्य हो चली थी। उनका ब्लड यूरिया लेवल और क्रिअटेनिन भी कम होने लगा था। जल्दी वे ठीक होकर अस्पताल से घर आ गईं। गुर्दों के फैल हो जाने के बाद होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति ने मरीज की जान बचा कर अपनी उपयोगिता एक बार फिर सिद्ध कर दी

- डॉ. कैलाशचंद्र दीक्षि
बीएससी के बाद 1967 में होम्योपैथ एंड बायोकेमी में डिप्लोमा हासिल किया। 40 सालों से अनेक असाध्य रोगियों को ठीक किया है। उन्हें माइग्रेन और एलर्जी के इलाज में महारत हासिल है

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi