Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

अल्लाह का शुक्र अदा करने का त्योहार

Advertiesment
हमें फॉलो करें 'ईदुल फितर'
-हाशिम अली 'आसिफ'
रसूले अकरम हजरत मोहम्मद हिजरत पलायन करके जब मक्का से मदीना तशरीफ लाए तो देखा कि वहाँ के लोगों ने दो ऐसे त्योहार तय कर रखे हैं जब वे तरह-तरह की रंग-रेलियाँ मनाते हैं, शराब और शबाब में मस्त रहते हैं, जुआ खेलते हैं, हुड़दंग करते हैं। उनकी यह हालत देखकर मेहबूबे खुदा को बेहद दुःख पहुँचा।

उन्होंने सभी मुसलमानों को इकट्ठा किया और फरमाया, 'अल्लाह त-आला ने तुम्हारे लिए खुशी के इससे बेहतर दो दिन मुकर्रर किए हैं। एक 'ईदुल फितर' का दिन और दूसरा 'ईदुल अदहा' (बकरीद) का दिन। ईद के ये दिन खूबियों के एतबार से कोई मामूली दर्जा नहीं रखते बल्कि ये भी इस्लाम में अजीमुश्शान (महान) दिन हैं।'

'ईदुल फितर' का त्योहार इस्लामिक माह शब्बाल (दसवाँ महीना) की पहली तारीख को मनाया जाता है। इसके ठीक पहले माहे रमजानुल मुबारक में मुसलमान तीस दिन तक कठिन उपवास (रोजे) रखते हैं। सूर्योदय से सूर्यास्त तक पूरे दिन रोजे के दौरान निर्जल और निराहार रहते हैं। पाँचों वक्त की नमाज के साथ कुराने पाक का पाठ और रातों में तरावीह (विशेष नमाज) अदा करते हैं।

नेकी और भलाई के कार्यों के अलावा दान-दक्षिणा एवं खैरो-खैरात के कार्य करते हैं। इसी कठिन तप से खुश होकर अल्लाह त-आला उन्हें रमजान के ठीक तीस रोजों के बाद ईद का तोहफा प्रदान करते हैं।

'ईदुल फितर' का शाब्दिक अर्थ है- 'रोजेदारों की खुशी'। इसे 'मीठी ईद' भी कहते हैं, कारण कि इस दिन घर-घर में मीठी सिवैयों का 'शीर खुरमा' बनता है।

अल्लाह त-आला ईद के दिन अपने बंदों को तरह-तरह के इनाम और इकराम (सम्मान) से मालामाल करते हैं। मान्यता है कि इस दिन फरिश्ते गली-कूचों के नुक्कड़ पर खड़े होकर आवाज लगाते हैं, 'मुसलमानों! अल्लाह की ओर सुबह से जाओ।

तुम्हारा खुदा थोड़ी-सी इबादत कबूल कर लेता है और बहुत-सा सवाब (पुण्य) देता है। तुमको रोजों का हुक्म हुआ था, तुमने रोजे पूरे कर लिए। तुमको नमाज का हुक्म हुआ था, तुमने नमाज भी अदा की। रातों को कियाम भी किया। जाओ, अपनी इबादत का सिला (इनाम) ले लो।'

ऐसा माना जाता है कि जब लोग ईद की नमाज से फारिग हो जाते हैं तो एक घोषणा होती है, 'तुम्हारे रब ने तुमको बख्श दिया। जाओ अपने घरों को।' स्थापित परंपरा के अनुसार ईदगाह पैदल ही जाना चाहिए और पूरे रास्ते में 'अल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर, लाइलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहो अकबर, वल्लाहो अकबर, वलिल्लाहिलहम्द' पढ़ते जाना चाहिए। इसी प्रकार जिस रास्ते से ईदगाह जाएँ, उसी रास्ते से नहीं लौटना चाहिए।

रसूले अकरम का इरशाद है, 'तीन लोगों की दुआ अक्सर कबूल होती है- एक रोजेदार, दूसरा इंसाफ पसंद और तीसरा मजलूम।' इस प्रकार ईद की खुशी का सर्वाधिक सिला इन तीन लोगों को नसीब होता है। देखा जाए तो 'ईदुल फितर' अल्लाह त-आला का शुक्र अदा करने का त्योहार है, जो रोजेदार को तीस दिन तक निराहार, निर्जल रहने की शक्ति देते हैं, उसे संयमित जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते हैं, उसमें नेक इंसान बनने की दृढ़ता प्रदान करते हैं।

ईदगाह पर जाकर नमाज पढ़ना एक धार्मिक प्रक्रिया भर नहीं है। अप्रत्यक्ष रूप से इसके और भी कई लाभ हैं। मसलन ईदगाह पर धार्मिक सहिष्णुता एवं आपसी मेल-मिलाप की भावना के दर्शन होते हैं। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, काले-गोरे सभी जब कंधे से कंधा मिलाकर नमाज पढ़ते हैंतथा नमाज के बाद गले गिलते हैं तो परस्पर भाईचारे, सद्भाव एवं समानता का अद्भुत ताना-बाना परिलक्षित होता है। अल्लाह रोजेदारों से खुश होकर उनके गुनाहों को माफ कर देते हैं और अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा देते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi