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फैशन के साथ बदलते रंग

कलर फोरकास्टर तय करते हैं जीवन के रंग

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- संजीवनी सिन्ह

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विकास का परिवार कार खरीदने के बारे में सोच रहा है। कार का ब्रांड तो तय हो गया लेकिन मामला अटका पड़ा है कार के रंग पर। पिता चाहते हैं सफेद, माँ चाहती है ब्लू और खुद विकास चाहता है काली...। अब इस सबमें कैसे हो मेल?

अनुराग अपने कमरे को पेंट करा रहा है। रंग की बारी आई तो उसकी कल्पना पर्पल पर अटक गई जबकि उसकी पत्नी मीनाक्षी पीले की जिद कर रही है।

हम दिन में कितनी बार रंगों को सोचते, चुनते और जीते हैं? कपड़ों के रंग तय करने से शुरू होता दिन कई-कई बार कई अलग-अलग चीजों को लेकर रंगों का चयन करता है। कपड़ों में तो जैसे रंगों की बहार हुआ करती है लेकिन ब्रांडेड रेडिमेड कपड़ों में सीजन के लिए रंगों की भविष्यवाणी की जाती है और फिर उसी रंग के अलग-अलग शेड पर काम किया जाता है।

रंगों की भविष्यवाणी का कारोबार यहीं आकर नहीं रुक जाता है। हमने कभी सोचा है कि क्यों एकाएक कंपनियाँ अपनी कार में कुछ नए और अटपटे रंगों का प्रयोग करती हैं? आज से 20 साल पहले काले और सफेद रंग की ही कारें बाजार में नजर आती थीं। फिर धीरे से लाल, सिल्वर और गोल्डन रंग की कारें आने लगीं।

एकाएक पीला, नीला, मेजेंटा रंग भी इसमें शुमार हुआ। और अब कारों में रंगों की कोई सीमा ही नहीं रही। उसी तरह अभी तक लैपटॉप में काला या फिर भूरा रंग ही मुख्यतः मिलता था, इन दिनों पिंक से लेकर मरून तक कई तरह के रंग में लैपटॉप मिलने लगे हैं। आखिर वो कौन लोग होते हैं, जो यह तय करते हैं कि किस सामान में कौन-कौन-से रंग खरीदे जा सकते हैं?

हमारे देश में यह चलन उतने बड़े पैमाने पर नहीं है, फिर भी एक हद तक यहाँ भी कलर फोरकास्टिंग का कारोबार होने लगा है। कपड़ों से लेकर सारी उपभोक्ता वस्तुओं में रंगों को लेकर कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं। रंग विशेषज्ञ रूचिका तँवर कहती हैं कि रंग जीवन-शैली का अंग है। किसी भी उत्पाद के बारे में उपभोक्ता क्या सोचता है, यह रंगों से प्रभावित होता है।

हम सबने सुना है कि एक व्यक्ति जो मिडलाइफ क्राइसिस से दो-चार हो रहा हो तो लाल फेरारी खरीदे लेकिन चटख पीले रंग की कार वही खरीद सकता है जो मजाकिया हो। लतिका खोसला, जोकि कलर फोरकास्ट करने वाली कंपनी कलर मार्केटिंग ग्रुप के साथ भी काम करती हैं, कहती हैं- 'हम यह कल्पना करने की कोशिश करते हैं कि अगले कुछ सालों में लोग कौन-सा रंग पसंद करेंगे।

सेलफोन, स्कूटर, घड़ियाँ, बाथरूम एसेसरीज आदि 40 से ज्यादा उद्योगों के लोग मिलकर माथापच्ची करेंगे और तय करेंगे कि उनकी नजर में सबसे बड़ी चीज क्या है। भारतीय बाजार में रंगों की भविष्यवाणी पूरी तरह से बाजार की आवश्यकता पर निर्भर करती है।

उदाहरण के लिए फैशन और मेकअप के रंग ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय होते हैं, फिर वे भारतीय त्वचा के अनुसार बदले जाते हैं। इंटीरियर, गैजेट्स और कप़ड़ों के रंग यहाँ की टीमें तय करती हैं कि भारतीय क्या पसंद करेंगे।' इमेज कंसल्टेंट शगुन ओबेरॉय के अनुसार- 'आखिर में फिल्मों पर ही आकर मामला टिकता है।

बॉलीवुड की फिल्में इस दौर की सबसे बड़ी ट्रैंडसेटर हैं। यदि किसी ब्लॉकबस्टर फिल्म में नारंगी रंग दिखाई दिया तो फिर यहाँ ऑरेंज के शेड्स की बाढ़ ही आ जाती है। यदि कैटरीना कैफ ने काले रंग की नेल पॉलिश लगाई है तो फिर वही फैशन हो जाएगा।'

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