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समुद्र : ज्वार-भाटा

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हमें फॉलो करें समुद्र ज्वारभाटा
अरविं

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आचार्य भूदेव भूगोल के अंतर्गत 'ज्वार-भाटा' अध्याय पढ़ा रहे थे। ज्वार का अर्थ है उठना और भाटा का गिरना या सिमटना। अर्थात समुद्र का उठना और गिरना। इसका अर्थ केवल लहरों के उठने गिरने से ही मत लगाना। 'ज्वार-भाटा' समुद्र के तल के उठने और गिरने से भी आते हैं। जल का स्तर अचानक बढ़ना शुरू होता है, फिर नीचे गिरने लगता है। जानते हो इसके मूल में कौन है? आप सबका मामा 'चंद्रमा'।

बच्चो! तुम जानते ही हो कि पृथ्वी अपनी धुरी पर पूर्व की ओर घूमती है। एक माह में अपनी धुरी पर वह 28 चक्कर लगाती है। इसी तरह चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता है। पृथ्वी की मात्रा चंद्रमा से 81.5 गुना अधिक है। दोनों ही इस्पात की गेंदों जैसे हैं। चंद्रमा जब भी पृथ्वी के निकट आता है तो पृथ्वी में खिंचाव सा पैदा कर देता है। सूर्य भी ऐसा ही करता है। ये दोनों ही पृथ्वी को अपनी ओर खींचते हैं। सारी पृथ्वी पर ही इस खींचातानी का प्रभाव पड़ता है। ठोस जमीन तो ऊपर उठ नहीं पाती, पर जो तल ठोस नहीं होता न, अत: इस आकर्षण के कारण समुद्र का जल ऊपर उठने के लिए उमगने लगता है।

बच्चो! क्योंकि सूर्य के मुकाबले चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट है तो उसका खिंचाव पृथ्वी पर सूर्य के खिंचाव से अधिक प्रभावशाली होता है। यही कारण है कि अधिकतर ज्वार-भाटे चंद्रमा के कारण आते हैं। क्योंकि चंद्रमा अपने परिक्रमा पथ में भूमध्य रेखा के उत्तर-दक्षिण भी घूमता है। अत: पृथ्वी से उसकी दूरी घटती-बढ़ती रहती है। जब वह पृथ्‍वी के समीप आता है तो 'ज्वार' और दूरी बढ़ने पर 'भाटा' उत्पन्न होता है।

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'ज्वार-भाटा' के आवेगों में पृथ्वी की पपड़ी कई सेंटीमीटर ऊपर-नीचे उठती या गिरती है। अब क्यों‍कि पृथ्वी के एक बड़े भाग में समुद्र का जल है, तो इस तरह पपड़ी के ऊपर या नीचे होने से वह चलायमान होता है। किंतु करोड़ों टन समुद्री जल को पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति दबाकर तो चंद्रमा उठा नहीं सकता पर उसमें तीव्र हलचल तो पैदा कर ही सकता है। और बच्चो यही होता भी है।

चंद्रमा अपना जितना बल पृथ्‍वी पर लगाता है, उसके मुकाबले पृथ्वी का जल को धारण किए रखने वाला बल 10 लाख गुना अधिक है। फिर भी चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण, समुद्र तल 45 सेमी तक ऊपर उठ आता है। परिणामस्वरूप समुद्रीय जल, तटों को दूर तक जलमग्न कर डालता है। इस उल्टे समुद्री धावे से खाड़ियों या नदियों के मुहाने जल से भरे स्तंभित से हो जाते हैं।

बच्चो! कल्पना करो भाटे के समय से पूर्व ज्वार आने के समय में एक नौका समुद्री जल में किनारे-किनारे जा रही है। फिर भाटा आ जाता है। सहसा ही नाव अपने आपको रेत पर टिका हुआ पाती है। समुद्र कई पग पीछे हट चुका होता है।

पृथ्वी पर एक प्रारंभिक समय ऐसा भी था जब वह अपनी धुरी पर मात्र छ: घंटों में घूम जाती थी। उस समय चंद्रमा की कक्षा भी पृथ्वी के समीप थी। तब पृथ्‍वी को हिला देने वाली रफ्तार से ज्वार-भाटे उठा करते थे। वे इतने ताकतवर थे कि समुद्र तट की हर चीज खींचकर समुद्र तल में डाल देते थे। अब जरा भविष्य की कल्पना करो, कुछ करोड़ वर्षों बाद जब पृथ्‍वी अपनी धुरी पर 96 घंटों में एक बार घूमेगी। पृथ्वी की हालत क्या होगी तब? भयावह। मौसम समाप्त हो जाएँगे। समुद्र मनमानी करेंगे।

हमारा माह मात्र 9 दिन में समाप्त हो जाया करेगा। पृथ्‍वी शीतल हो चुकी होगी। ज्वार का जल वापस समुद्र में नहीं लौटाए वरन बर्फ बनकर पृथ्‍वी पर ही जम जाया करेगा। चंद्रमा सदैव एक ही स्थल पर स्थिर सा खड़ा मिला करेगा। पृथ्वी और चंद्रमा दोनों ही अपनी धुरी पर वर्ष में सात बार घूमा करेंगे। सदैव एक दूसरे के सम्मुख रहा करेगा दूसरा कभी न देखा जा सकेगा।

बच्चे अचरज से एक-दूसरे को देख रहे थे। आँखों में हैरत थी ‍अविश्वास था। भूदेव जी कहे जा रहे थे।
चंद्रमा का ज्वार अब 12 घंटे 25 मिनट में पृथ्वी पर आता है जबकि सूर्य की आकर्षण शक्ति से उठा 'सौर-ज्वार' 12 घंटे में। अमावस्या और पूर्णमासी को इसलिए भी बड़े-बड़े ज्वार आते हैं, तब सौर और चंद्र ज्वार आपस में मिलकर शक्तिशाली हो उठते हैं। इसके बिल्कुल विपरीत एकादशी और त्रयोदशी पर
सूर्य और चंद्र समकोण पर खिंचाव पैदा करते हैं। तब इनकी शक्ति बँट जाती है और हम 'लघु ज्वार' ही देख पाते हैं।

'गुरुजी! सूरज के सामने तो चंद्रमा कुछ भी नहीं है, तब उस के ज्वार-भाटा में ताकत क्यों है?' विकास ने उठकर पूछा। विकास! सूरज के मुकाबले चंद्रमा पृथ्वी के बहुत निकट है, इसीलिए। देखो, सूर्य चंद्रमा की अपेक्षा 388 गुना दूर है। उसकी मात्रा भी 27 करोड़ गुना अधिक है। इसीलिए धरती पर चंद्रमा का आकर्षण 180 गुना अधिक है। आओ यह समीकरण देखो।

आकर्षण = मात्रा/दूरी

अब समझो, यदि पृथ्वी को बराबर बल से चंद्रमा सूर्य द्वारा खींचा जावे तो चंद्रमा का ज्वार उत्पादक बल सूर्य के बल से 388 गुना अधिक होगा क्योंकि सूर्य उससे 388 गुना दूर है। लेकिन इसमें पेच यह आ रहा है कि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल का 1/180 ही है। तब चंद्रमा द्वार उत्पादित ज्वार भाटा बल के मुकाबले 388/180 = 2.16 गुना अधिक होगा।

इसीलिए यह बल निकट होने के कारण 1/27 करोड़ गुना अधिक ठहरता है। एक बात हम यहाँ स्पष्ट कर दें कि सूर्य और चंद्र के बल की दिशाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। ज्वार-भाटे का अधिक ऊँचा या नीचा होने का एक और कारण धरती और समुद्र की सीमा रेखा में विविधता होना भी है।

जब पृथ्वी पर चंद्रमा का ज्वार भाटा उठता है, तब लगभग छह घंटे में 22 हजार क्यूबिक किलोमीटर जल चलकर एक चौथाई पृथ्वी का चक्कर लगा लेता है। यूँ समझो चंद्रमा इस पानी का प्रयोग पृथ्‍वी के घूर्णन में 'ब्रेक' की तरह करता है। इससे पृथ्वी की रफ्तार कुछ थमती है और चंद्रमा का कक्ष बढ़ जाता है।

बच्चो! पृथ्वी के अंतिम दिनों में सौर ज्वार से भी अधिक तीव्रता के साथ आकर पृथ्‍वी की रफ्‍तार धीमा करेंगे, तब चंद्र ज्वार पृथ्वी के चारों ओर पूर्व दिशा में हुआ करेंगे, तब चंद्रमा का कक्ष और बढ़ जाएगा तथा माह छोटा होगा। पृथ्वी की सूर्य के आसपास घूमने की गति भी बढ़ जाएगी। आशा है, अब तुम ज्वार भाटे का कारण समझ गए होंगे। आचार्य भूदेव उठ खड़े हुए। विद्यालय समाप्ति की सूचना का घंटा बज रहा था।

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