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आंवला : अमृत के गुणों से भरा

पौरुष बढ़ाता है आंवला

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आंवला विटामिन 'सी' का सर्वोत्तम और प्राकृतिक स्रोत है। इसमें विद्यमान विटामिन 'सी' नष्ट नहीं होता। आंवला दाह, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, खांसी, श्वास रोग, कब्ज, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है। सिर के केशों को काले, लम्बे व घने रखता है। जैसे देवताओं में ब्रह्मा-विष्णु-महेश हैं वैसे ही आयुर्वेद में हरड़-बहेड़ा और आंवला की कीर्ति है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- आमलकी धात्री। हिन्दी- आंवला। मराठी- काम्वट्ठा, आंवला। गुजराती- आँवला। कन्नड़-मलयालम- नेल्लि। तमिल- नेल्लिकाई। तेलुगू- उशीरिकई, उसरकाम। फारसी- आमलज। इंग्लिश- एम्बलिक माइरोबेलेन। लैटिन- एम्बिलिका आफिसिनेलिस।

रासायनिक संघटन : आंवला के 100 ग्राम रस में 921 मि.ग्रा. और गूदे में 720 मि.ग्रा. विटामिन सी पाया जाता है। आर्द्रता 81.2, प्रोटीन 0.5, वसा 0.1, खनिज द्रव्य 0.7, कार्बोहाइड्रेट्स 14.1, कैल्शियम 0.05, फॉस्फोरस 0.02, प्रतिशत, लौह 1.2 मि.ग्रा., निकोटिनिक एसिड 0.2 मि.ग्रा. पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें गैलिक एसिड, टैनिक एसिड, शर्करा (ग्लूकोज), अलब्यूमिन, काष्ठौज आदि तत्व भी पाए जाते हैं।

उपयोग : त्रिफला की 3 औषधियों में से आंवला एक है। इसे सूखे चूर्ण के रूप में अन्य औषधियों के साथ नुस्खे के रूप में और अचार, चटनी, मुरब्बे के रूप में सेवन किया जाता है। च्यवनप्राश, ब्राह्मरसायन, धात्री लौह और धात्री रसायन आदि आयुर्वेदिक योग तैयार करने में आंवला काम आता है। यह अनेक रोगों को नष्ट करने वाला पोषक, धातुवर्द्धक और रसायन है। आयुर्वेद ने इसे 'अमृतफल' कहा है।

विटामिन सी ऐसा नाजुक तत्व होता है जो गर्मी के प्रभाव से नष्ट हो जाता है, लेकिन मजे की बात यह है कि आंवला में विद्यमान विटामिन सी किसी भी सूरत में नष्ट नहीं होता। यह सदाबहार फल सभी ऋतुओं में चटनी, मुरब्बा, अचार, चूर्ण, अवलेह आदि के रूप में गुणकारी बना रह सकता है।

आंवला के प्रयोग

ताजे आंवला जो खूब अच्छे पके और बड़े आकार के हों, बिना दाग वाले हों इकट्ठा कीजिए। जितने अधिक से अधिक आंवला इकट्ठे कर सकें कीजिए, क्योंकि ये खराब तो होते नहीं। आप इन्हें सुखाकर रख सकते हैं।

आंवलों को बड़े सरोते से काटकर इसकी गुठली निकाल दें और धूप में सुखाकर बोरे में या कनस्तरों में भरकर रख लीजिए। अच्छी तरह सूखा आंवला खराब नहीं होगा।

* एक साबुत आंवला दाल या शाक बनते समय शुरू से ही डाल दीजिए तो यह दाल-शाक बनने के दौरान पक जाएगा। आंवले को ठण्डा होने पर मसलकर इसमें शकर या मिश्री मिलाकर भोजन के साथ शाक की तरह खाते जाइए। इस प्रकार आप एक आंवला प्रतिदिन भोजन के साथ तब तक खाते रहिए जब तक आपको हरा व ताजा आंवला मिलता रहे।

आंवले के अन्य लाभ : नेत्र ज्योति बढ़ना, बाल मजबूत होना, सिर दर्द दूर होना, चक्कर, नकसीर, दांत-मसूड़ों की खराबी दूर होना, कब्ज, रक्त विकार, चर्म रोग, पाचन शक्ति में खराबी, रक्ताल्पता, बल-वीर्य में कमी, बेवक्त बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होना, फेफड़ों की खराबी, श्वास रोग, क्षय, दौर्बल्य, पेट कृमि, यकृत की कमजोरी व खराबी, स्वप्नदोष, धातु विकार, हृदय विकार, उदर विकार, मूत्र विकार आदि अनेक व्याधियों के घटाटोप को दूर करने के लिए अकेला आंवला ही काफी है।

बस लगातार नियमपूर्वक 1 या 2 आंवले रोज खाना शर्त है। 3-4 माह में ही कायापलट होने लगेगी।

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