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सेहत के दो मीत : योग और संगीत

एके रावल

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संगीत को ईश्वर का दर्जा प्राप्त है, इसीलिए इस विधा में शुद्धता और शास्त्रीयता का विशेष महत्व है। सात शुद्ध और पांच कोमल स्वरों के माध्यम से मन को साधने का उपाय है संगीत। एक तरफ जहां 'योग' से मनुष्य शरीर, मन और मस्तिष्क को साधता है, वहीं 'संगीत' हमारी आत्मा को शुद्ध करता है

संगीत का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना नहीं है, आधुनिक एवं मीडिया में बने रहने के इच्छुक संगीतज्ञों को छोड़ दिया जाए तो हर तरह का संगीत शुद्धता व पवित्रता पर जोर देता है। स्वरों की उपासना, रियाज, शास्त्र शुद्ध पद्धति द्वारा नाद ब्रह्म की आराधना कर अंतर्मन में गहराई तक उतारना संगीत का मुख्य लक्ष्य है। इसलिए संगीत शास्त्र व आध्यात्मिक एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, क्योंकि दोनों का उद्देश्य समान है आत्म साक्षात्कार।

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मानव जीवन की आवश्यकताओं में पहला सुख निरोगी काया माना गया है। निरोगी शरीर व मस्तिष्क हर किसी के लिए आवश्यक है। आत्म साक्षात्कार हेतु प्रयासरत कई साधक बीमार शरीर के कारण प्रगति नहीं कर पाते हैं। जिस प्रकार संगीत एक उपासना का तरीका है। उसी प्रकार का 'योग शास्त्र' जीवन का मित्र है। यदि शरीर स्वस्थ रहे तो हम जीवन का आनंद ले सकते हैं।

संगीत में रियाज के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है। योग शास्त्र हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक है। मन की, मस्तिष्क की एकाग्रता, प्रसन्नचित्त व्यक्तित्व योग शास्त्र की देन है।

संगीत में स्वरों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है, पर योग शास्त्र में आसन व मुद्राओं पर जोर दिया जाता है। दोनों में ही स्वर व मुद्रा की श्रेष्ठता से आनंद और स्वास्थ्य पाया जा सकता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो दोनों शास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं।

संगीत साधना फिर चाहे गायन हो, वादन हो, कलाकार को एक ही मुद्रा में घंटों बैठे रहना पड़ता है। उसी तरह से योग में भी एक अवस्था में बैठना आवश्यक है। संगीत में एक ही स्थान पर साधना करने के लिए शरीर, मन व मस्तिष्क पूर्ण स्वस्थ होना चाहिए। और इसके लिए योग सर्वश्रेष्ठ है। योग से शरीर, मन, मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। मनुष्य एकाग्र रहता है व प्रसन्न मन से काम करता है।

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विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि संगीत साधना व योग साधना दोनों से मनुष्य के जीवन में शक्ति का विकास होता है। अतः कहा जा सकता है कि शरीर तथा मन को स्वस्थ्य, प्रफुल्लित रखने के लिए योग शास्त्र व संगीत शास्त्र दोनों समान रूप से आवश्यक है। दोनों से शरीर, मन, मस्तिष्क स्वस्थ रहता है, एकाग्रता रहती है। योग की तरह ही संगीत से तनाव भी दूर होता है।

संगीत का असली आनंद सड़क पर, बगीचे में, बरामदे में, छत पर सुबह, शाम घूमते हुए उठाना चाहिए। रात में सोने से 2 घंटे पहले सुपाच्य भोजन करना चाहिए और दिन में कम से कम एक बार दिल खोलकर हंसना चाहिए।

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