Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

फिजियोथेरेपी में नए रिसर्च को लाना जरूरी...

मरीज को ठीक करने में होलिस्टिक एप्रोच होना चाहिए

Advertiesment
हमें फॉलो करें फिजियोथेरेपी
WD


इंदौर। फिजियोथेरेपी के क्षेत्र में नए रिसर्च खूब हो रहे हैं लेकिन वे फील्ड में इम्प्लीमेंट नहीं हो पा रहे हैं। उन्हें रोजमर्रा के इलाज में शामिल करना मरीज के हित में है। अब पुरानी शैली को बदलने का वक्त आ गया है।

मरीज की शारीरिक परेशानी को ही ठीक करने की भावना न हो, तो फिजियोथेरेपिस्ट को मरीज के मनोदैहिक इलाज के लिए भी तैयार रहना चाहिए। मरीज में आत्मविश्वास जागृत करने के बाद किए गए इलाज से अच्छे नतीजे सामने आते हैं। वाचाघात के मरीजों में इलेक्ट्रिकल स्टिम्युलेशन थेरेपी देने से उन्हें निगलने में राहत मिलती है। इंडियन फिजियोथेरेपी एसोसिएशन की 52वीं वार्षिक कांफ्रेंस के उद्घाटन सत्र में देश-विदेश से आए विद्वान फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा दिए गए व्याख्यानों के बाद यह निष्कर्ष सामने आए।

सिंगापुर फिजियोथेरेपी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉ. दिनेश वर्मा ने बताया कि डिस्फेजिया या वाचाघात के मरीजों में फिजियोथेरेपी के माध्यम से राहत देने वाली चिकित्सा मेनस्ट्रीम ट्रीटमेंट में शामिल नहीं है। देश में चुनिंदा केंद्रों पर ही इस तरह की चिकित्सा प्रदान की जा रही है। आमतौर पर वाचाघात के मरीजों की निगलने की प्रक्रिया सुरक्षित नहीं होती हैं, क्योंकि गले की मांसपेशियों शिथिल होकर ठीक से काम नहीं कर पाती हैं। इससे मरीजों में भोजन आहार नली की बजाए फेफड़े में जाने का जोखिम होता है। गले की मांसपेशियों के शिथिल होने में पक्षघात, ब्रेन स्ट्रोक, हैड एंड नेक कैंसर तथा पार्किंसॉन्स डिसीज को जिम्मेदार माना जाता है।

कांफ्रेंस में आए फिजियोथेरेपिस्ट्‍स ने माना है कि अभी तक लैब में हो रहे रिसर्च का उपयोग फील्ड में नहीं हो पा रहा है। एकेडेमिक रिसर्च होते हैं जिनकी उपयोगिता कम है। प्रॉब्लम्स ओरिएंटेड रिसर्च नहीं हो रहे हैं। इन पर ध्यान देने की जरूरत है। डॉ. उमाशंकर मोहंती ने कहा कि मशीनों पर निर्भरता कम से कम रखें और अपने हाथों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें। मरीज की हर समस्या का निदान मशीन से नहीं हो सकेगा।

डॉ. केतन भाटीकर ने बताया कि खिलाडियों में सबसे अधिक चोटें वार्मअप करे बगैर मैदान में कूद पड़ने के कारण होती हैं। शरीर के मसल्स अचानक लोड लेने के लिए तैयार नहीं होते। इसलिए इंज्यूरी होती है। डॉ. आनंद मिश्रा ने बताया कि तेज गेंदबाजों के पीठ और कंधे की चोटें वहां की मांसपेशियों की कमजोरी की कारण होती हैं। जिसकी कमर जितनी मजबूत होगी वह गेंद भी अधिक तेजी से फैंक सकेगा।

डिसीज रिहेबिलिटेशन सेंटर भोपाल की डॉ. अरुणा रविपाठी ने बताया कि फिजिकली डिसएबल्ड मरीजों को फिजियोथेरेपी की जरूरत नियमित रूप से पड़ती है। अधिकांश मरीज नियमित रूप से इलाज नहीं ले पाते हैं। इससे उनके आत्मनिर्भर होने में परेशानियां आती हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi