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जहाँ औरतें गढ़ी जाती हैं

स्त्री अस्तित्व की सार्थक पड़ताल

हमें फॉलो करें जहाँ औरतें गढ़ी जाती हैं
-शरद सिं
NDND
मृणाल पाण्डे एक समर्थ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं। उन्होंने जब भी किसी विषय पर कलम चलाई है, उस विषय की पूरी तरह पड़ताल करने के बाद। वे सतह के ऊपर-ऊपर देखने की नहीं, तह तक पैठने की आदी हैं। यही खूबी उनकी पुस्तक 'जहाँ औरतें गढ़ी जाती हैं' में देखने को मिलती है।

पुस्तक का नाम नारी विमर्श का आग्रह करता हुआ भले ही प्रतीत हो, किंतु पुस्तक के लेख नारी विमर्श को, किसी नारे के समान नहीं उछालते। ये लेख समाज में स्त्री के अस्तित्व की एक सार्थक पड़ताल के विविध आयामों के रूप में मिलते हैं। 'मृणाल पाण्डे अपने इन लेखों में एक ओर निम्न तथा निम्न-मध्यम वर्ग की खाँटी स्त्री की व्यथा-कथा रेखांकित करती हैं, तो वहीं दूसरी ओर पत्रकारिता जगत तथा नारीवादी आंदोलन से जुड़ी स्त्रियों की दशा और दिशा को भी उजागर करती हैं।'

पुस्तक में संग्रहीत लेख लेखिका द्वारा समय-समय पर लिखी गई वे टिप्पणियाँ हैं, जिनमें उन्होंने स्त्री के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा स्त्रीत्व के अधिकारों पर चर्चा की है। मृणाल पाण्डे अपने इन लेखों में एक ओर निम्न तथा निम्न-मध्यम वर्ग की खाँटी स्त्री की व्यथा-कथा रेखांकित करती हैं, तो वहीं दूसरी ओर पत्रकारिता जगत तथा नारीवादी आंदोलन से जुड़ी स्त्रियों की दशा और दिशा को भी उजागर करती हैं।

इन लेखों की एक विशेषता यह भी है कि ये स्त्री की दीन-हीन दशा पर केवल प्रलाप नहीं करते, वरन्‌ दशा सुधारने के लिए समाधान भी सामने रखते हैं। 'सती लोकतंत्र और हम', 'भारतीय राज समाज के अर्द्धसत्य', 'भारतीय राजनीति में महिला आरक्षण का सवाल', 'स्त्री होने का सच', 'अकाल मृत्यु और स्कूल के बीच ठिठकी लड़कियाँ', 'समर्थ स्त्रियों से कौन डरता है' आदि लेख उन ज्वलंत प्रश्नों को सामने रखते हैं, जिनसे समाज और राजनेता मुँह चुराने का प्रयास करते रहते हैं।

इसी प्रकार एक और लेख है, जो पढ़ने वाले की अंतरात्मा को झकझोरे बिना नहीं रह सकता है- 'आओ गुड़िया से खेलें : एक हॉरर शो'। तौफीक और आरिफ के बीच जिंदगी से जूझती हुई गुड़िया का त्रासद अंत तो सभी को ज्ञात है, किंतु जो प्रायः अनदेखा रह जाता है, उस पर ध्यान दिलाया गया है इस लेख में। गुड़िया के प्रकरण पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए लेखिका ने लिखा है कि 'इतनी नाटकबाजी और आपाधापी के द्वारा जुटाई गई कवरेज में तथ्य जरूर हो सकते हैं, लेकिन मूल्य नहीं।'

'जहाँ औरतें गढ़ी जाती हैं' इस पुस्तक का सबसे महत्वपूर्ण लेख है। इस शीर्षक-लेख में भारतीय सिनेमा में औरतों के प्रवेश के पूर्व तथा प्रवेश के बाद औरतों की स्थिति पर दृष्टि डाली गई है। इस लेख को पढ़ते हुए पाठक अपने आपको जीवन के उस हिस्से में पाता है, जहाँ समाज और सिनेमा एकरूप होकर स्त्री के अस्तित्व को गढ़ते हुए मिलते हैं। जहाँ स्त्री को कच्चे माल की तरह प्रयोग में लाते हुए 'भारत सुंदरी', विश्व सुंदरी' अथवा 'ब्रह्मांड सुंदरी' के साँचे में ढाला जाता है। इसी सच को आगे रखता है लेख- 'चौथी कसम उर्फ पकड़ी गई मिस इंडिया'। पुस्तक में साहित्य और पत्रकारिता दोनों के तत्व संतुलित मात्रा में उपस्थित हैं, जो मन-मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ने में सक्षम हैं।

पुस्तक : जहाँ औरतें गढ़ी जाती हैं
लेखिका : मृणाल पाण्डे
प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन, 7/31, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-2
मूल्य : 175 रुपए

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