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निर्मल वर्मा : सही मायनों में लेखक

आलोचनात्मक आलेखों का संग्रह

हमें फॉलो करें निर्मल वर्मा : सही मायनों में लेखक
पुस्तक के बारे मे
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एक अग्रणी कथाकार के साथ ही साथ निर्मल वर्मा न केवल हिन्दी बल्कि समूचे देश के समकालीन श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों में भी गिने जाते हैं। उन्होंने जो आलोचना लिखी हैं और अनेक प्रश्नों पर चिंतन किया है वह इस दौरान हिन्दी में इस विधा के सबसे विचारोत्तेजक हिस्से में आता है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जैसे निर्मल वर्मा ने हिन्दी को कथा भाषा दी है उसी तरह से हिन्दी की नई चिंतन भाषा के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

इस पुस्तक में अशोक वाजपेयी, मदन सोनी, उदयन वाजपेयी, शिरीष ढोबले, प्रभात त्रिपाठी, नंदकिशोर आचार्य,ध्रुव शुक्ल, जयशंकर, रामचन्द्र गाँधी, रमेश चन्द्र शाह, मलयज, रामाश्रय राय, सुधीर चन्द्र, वागीश शुक्ल जैसे विद्वानों ने निर्मल वर्मा के लेखन की विविध विशेषताओं, खामियों और खूबियों को उजागर किया है।
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चुनिंदा अं
निर्मल वर्मा वर्षों से भारतीय समाज में अपने कृतित्व और अपने जीवन के माध्यम से, एक लेखक का, लेखक की तरह रहने का अवकाश तलाशते रहे। दूसरे शब्दों में वे आधुनिक भारतीय समाज में, जिसकी आधारशिला ही अ-साहित्यिक प्रवचनों ने उन्नीसवीं शती के अंत में रखी थीं, साहित्यिक कृतित्व के स्थान को निर्मित करने और उसकी वैधता की सिद्धी में एकाग्रता से लीन रहे हैं। इसे संयोग नहीं मानना चाहिए कि शायद वे उन विरले लेखकों में हैं जो अपना परिचय सिर्फ यह कह कर दे सकते हैं कि वे 'लेखक' हैं।
('होना एक लेखक का' से)
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निर्मल वर्मा की भाषा को हिन्दी के आलोचक चित्रों और संगीत की भाषा कह कर टालते रहें और खुश होते रहें हैं। शायद वे चित्र और संगीत को प्यार करने वाले आदमी को उसके मन से नहीं जानते। निर्मल वर्मा की भाषा, एक सचमुच जी रहें व्यक्ति की भाषा है। जिसमें अनुभव की उत्कट साझेदारी भी संभव है और एक बौद्धिक बहस भी। शायद इसीलिए मुझे लगता है कि निर्मल वर्मा की भाषा को तकनीकी रास्तों से 'इंटरप्रेट' करना उचित नहीं है। वे जितने संवेदनशील आत्मसजग होकर होकर शब्दों को छूते हैं, उसे समझना बहुत जरूरी है।
('आत्मीय संसार में कुछ घटता हुआ' से)
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निर्मल वर्मा के भाव-बोध में एक खुलापन निश्चय ही है। न केवल रिश्तों की लहूलुहान पीड़ा के प्रति बल्कि मनुष्य के उस अनुभव और उस वृत्ति के प्रति भी, जो उसे जिन्दगी के मतलब की खोज में प्रवृत्त करती है। यह अकारण नहीं है कि 'मव्वे और काला पानी के त्रास अंधेरे के बीचोंबीच वे बड़े भाई की दृष्टि से छोटे भाई को देखना और छोटे भाई की दृष्टि से बड़े भाई को देखना और एक निरपेक्ष पीठिका परिवेश में दोनों के प्रति न्याय करना भी आवश्यक पाते हैं।
('कव्वे और काला पानी 'से)
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समीक्षकीय टिप्पणी

निर्मल वर्मा ऐसे लेखकों में से है जो हमारी आलोचना के सामने एक नई चुनौती की तरह हैं। उनका साहित्य और चिंतन उत्तर औपनिवेशिक समाज में कुछ बहुत मौलिक प्रश्न और चिंताएँ उठाता है। एक व्यक्ति-लेखक की गहरी बौद्धिक और आध्यात्मिक विकलता व्यक्त करता है। साथ ही भारतीय परंपरा और पश्चिम की चुनौतियों के द्वंद्व की नई समझ देता है।

पुस्तक : निर्मल वर्मा
परिचय : निर्मल वर्मा पर के‍न्द्रित आलोचनात्मक आलेखों का संग्रह
संपादक : अशोक वाजपेयी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 256
मूल्य: 200 रुपए

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