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मध्यमवर्गीय अनुभवों का दस्तावेज

पुस्तक समीक्षा

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सूर्यकांत नागर की पुस्तक 'श्रेष्ठ कहानियां' उनकी 17 चुनिंदा कहानियों का संग्रह है। इन कहानियों में हमें समाज के विभिन्न वर्गों के उजले और काले चेहरे हूबहू नजर आते हैं। उनकी कहानियां मध्यमवर्गीय व्यक्ति के जीवन के अनुभवों का दस्तावेज है। लेखक ने बिना किसी लाग-लपेट के कहानियों के पात्रों के माध्यम से उनके मन की वास्तविक सोच को सीधे-सीधे उजागर किया है।

लेखक ने 'न घर, न घाट' में एक ओर दलित घीसू के डॉक्टर बन जाने पर गांव, पत्नी व पिता को भुला दिए जाने के उसके व्यवहार को उकेरा है तो साथ ही ऊंचे पद पर पहुंच जाने के बावजूद दलित के प्रति उच्च वर्ग लोगों का रवैया नहीं बदलने की बात रखी है।

'मृगतृष्णा' में एक लाड़-प्यार में पले-बढ़े, थर्ड डिवीजन में पास बिगड़ैल पौत्र के प्रति मोह के कारण नामी प्रोफेसर रहे दादाजी जब-तब शर्मिन्दगी झेलते हैं। पति की बीमारी में अस्पताल में पैसों की किल्लत से जूझती पत्नी की व्यथा 'तैरती मछली के आंसू' में टपकती नजर आती है।

'पीएचडी करती लड़की का पिता' में बेटी की पीचएडी के दौरान पिता को हुए अनुभवों का रेखाचित्र है। पिता और बेटी के प्यार को लेकर कम ही उपन्यास और कहानियां लिखी गई हैं। लेकिन लेखक ने इस विषय पर भी अपनी लेखनी के जरिए अत्यंत सहजता और सरलता से पिता के दिल में बेटी के लिए छुपे प्यार को शब्दों में पिरोया है।

इस कहानी में लेखक लिखते हैं कि 'यह अलग बात है कि पिता का प्यार दिखाई नहीं देता। वह निर्व्याज, निःस्वार्थ, तर्कातीत और मौन होता है।' 'बासी कढ़ी में उबाल' में उम्रदराज व्यक्ति का जीवन से मोह व बुढ़ापे के आगमन के दौरान होने वाले अनुभवों को लेखक ने काफी खुलेपन से प्रस्तुत किया है। 'जल्दी घर आ जाना' पत्नी के बिना पति की दशा बयान करती है। वहीं 'बेटियां' माता-पिता के प्रति बेटी के निःस्वार्थ प्रेम को दर्शाती हैं। भावना के स्तर पर ये कहानियां हमको उद्वेलित करती हैं।


पुस्तक : श्रेष्ठ कहानियां
लेखक : सूर्यकांत नागर
प्रकाशक: समय प्रकाशन, आई1/ 16, शांतिमोहन हाउस,अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली, 110002
कीमत : 160 रुपए

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