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महिमा जन-जन की प्रिय हिन्दी की

- गरिमा माहेश्वरी

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संस्कृत और हिन्दी देश के दो भाषा रूपी स्तंभ हैं जो देश की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को विश्व के मंच पर बखूबी प्रस्तुत करते हैं। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं।

हिन्दी भाषा को हम राष्ट्रभाषा के रूप में पहचानते हैं। हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। विश्व में 500 से 600 मिलियन लोग हिन्दी भाषी हैं।

देश के गुलामी के दिनों में यहां अंग्रेजी शासनकाल होने की वजह से, अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ गया था। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात देश के कई हिस्सों को एकजुट करने के लिए एक ऐसी भाषा की जरूरत थी जो सर्वाधिक बोली जाती है, जिसे सीखना और समझना दोनों ही आसान हों।

इसके साथ ही एक ऐसी भाषा की तलाश थी जो सरकारी कार्यों, धार्मिक क्रियाओं और राजनीतिक कामों में आसानी से प्रयोग में लाई जा सके। हिन्दी भाषा ही तब एक ऐसी भाषा थी जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय थी।

हिन्दी भाषा को एकता का माध्यम बनाने के लिए सन् 1949 में एक एक्ट बनाया गया जो सरकारी कार्यों में हिन्दी का प्रयोग अनिवार्य करने के लिए था।

धीरे-धीरे हिन्दी भाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है।

आज कई विदेशी छात्र हमारे देश में हिन्दी और संस्कृत भाषाएं सीखने आ रहे हैं। विदेशी छात्रों के इस झुकाव की वजह से देश के कई विश्वविद्यालय इन छात्रों को हमारे देश की संस्कृति और भाषा के ज्ञानार्जन के लिए सुविधाएं प्राप्त करवा रहे हैं। विदेशों में हिन्दी भाषा की लोकप्रियता यहीं खत्म नहीं होती। विश्व की पहली हिन्दी कॉन्फ्रेंस नागपुर में सन् 1975 में हुई थी। इसके बाद यह कॉन्फ्रेंस विश्व में बहुत से स्थानों पर रखी गई।

दूसरी कॉन्फ्रेंस- मॉरीशस में, सन् 1976 में, तीसरी कॉन्फ्रेंस-भारत में, सन् 1983 में, चौथी कॉन्फ्रेंस - ट्रीनिडाड और टोबैगो में, सन् 1996 में पांचवीं कॉन्फ्रेंस-यूके में, 1999 में, छठी कॉन्फ्रेंस-सूरीनाम में, 2003 में और सातवीं कॉन्फ्रेंस-अमेरिका में, सन् 2007 में।

हिंदी भाषा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :
* आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि हिंदी भाषा के इतिहास पर पहले साहित्य की रचना भी ग्रासिन द तैसी, एक फ्रांसीसी लेखक ने की थी।

* हिंदी और दूसरी भाषाओं पर पहला विस्तृत सर्वेक्षण सर जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन (जो कि एक अंग्रेज हैं) ने किया।

* हिंदी भाषा पर पहला शोध कार्य ‘द थिओलॉजी ऑफ तुलसीदास’ को लंदन विश्वविद्यालय में पहली बार एक अंग्रेज विद्वान जे.आर.कारपेंटर ने प्रस्तुत किया था।

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