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मृदुला गर्ग को साहित्य अकादमी पुरस्कार

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हिन्दी की लोकप्रिय लेखिका मृदुला गर्ग को इस बार साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई हैकोलकाता में जन्मी मृदुला गर्ग को यह पुरस्कार उनके उपन्यास मिलजुल मन के लिए दिया गया है।

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कोलकाता में जन्मी मृदुला गर्ग हिन्दी की सुप्रसिद्ध लेखिका हैं। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने लगभग 25 पुस्तकों की रचना की है। 1960 में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद उन्होंने 3 साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया है।

उनके उपन्यासों को कथानक की विविधता और अनूठेपन के कारण समालोचकों की बड़ी स्वीकृति और सराहना मिली। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक भारतीय भाषाओं तथा जर्मन, चेक, जापानी और अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है। वे स्तंभकार रही हैं, पर्यावरण के प्रति उनकी सजगता सब जानते हैं। वे महिलाओं तथा बच्चों के हित में समाज सेवा करती रही हैं। उनका उपन्यास 'चितकोबरा' नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था।


उन्होंने इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में लगभग तीन साल तक कटाक्ष नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में 1990 में आयोजित एक सम्मेलन में हिन्दी साहित्य में महिलाओं के प्रति भेदभाव विषय पर व्याख्यान दे चुकी हैं।

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उन्हें हिन्दी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, सूरीनाम में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में आजीवन साहित्य सेवा सम्मान, उपन्यास 'कठगुलाब' के लिए व्यास सम्मान तथा कठगुलाब के लिए ही ज्ञानपीठ के वाग्देवी पुरस्कार से नवाजा गया है। उसके हिस्से की धूप उपन्यास को 1975 में तथा जादू का कालीन को 1993 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया।

उनके उपन्यासों में-उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्या, मैं और मैं तथा कठगुलाब खासे चर्चित रहे हैं।

कहानी संग्रह- कितनी कैदें, टुकड़ा टुकड़ा आदमी, डैफोडिल जल रहे हैं, ग्लेशियर से, उर्फ सैम, शहर के नाम, चर्चित कहानियां, समागम, मेरे देश की मिट्टी अहा, संगति विसंगति, जूते का जोड़ गोभी का तोड़, चार नाटक- एक और अजनबी, जादू का कालीन, तीन कैदें और सामदाम दंड भेद पाठकों ने बड़ी संख्या में पसंद किए हैं।

उनके निबंध संग्रह में 'रंग ढंग' तथा 'चुकते नहीं सवाल' प्रमुख हैं। यात्रा संस्मरण- कुछ अटके कुछ भटके तथा एक व्यंग्य संग्रह- कर लेंगे सब हजम प्रकाशित हुए हैं

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