Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

निर्मल वर्मा का साहित्य चलचित्रमय है

3 अप्रैल निर्मल वर्मा की जयंती पर विशेष

हमें फॉलो करें निर्मल वर्मा का साहित्य चलचित्रमय है
PR
PR
हिन्दी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक निर्मल वर्मा का कहानी में आधुनिकता का बोध लाने वाले कहानीकारों में अग्रणी स्थान है।

हिन्दी की वरिष्ठ कहानीकार कृष्णा सोबती ने कहा है कि निर्मल वर्मा जैसे कई साहित्यकार जीवन के अंतिम समय में जिस परेशानी से गुजरे उसे देखते हुए साहित्य समाज को एक कोष का निर्माण करना चाहिए ताकि साहित्य सेवा करने वाला कोई व्यक्ति फिर इस दौर से न गुजरे।

उन्होंने कहा कि इसके लिए सभी साहित्यकार यदि केवल दस-दस रुपए का भी योगदान दें तो करोड़ों रुपए का कोष बन सकता है। निर्मल वर्मा की कहानी में हिमाचल की पहाड़ी छायाएँ दूर तक पहचानी जा सकती है। उन्होंने कहानी की प्रचलित कला में संशोधन किया और प्रत्यक्ष यथार्थ को भेदकर उसके भीतर पहुँचने का प्रयास किया। उनकी कहानी शिल्प और अभिव्यक्ति की दृष्टि से बेजोड़ समझी जाती है।

हिन्दी साहित्य में अज्ञेय और निर्मल वर्मा जैसे विरले ही साहित्यकार हुए हैं, जिन्होंने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर भारतीय और पश्चिम संस्कृतियों के अंतर्द्वंद्व पर गहन एवं व्यापक तौर पर विचार किया है।

निर्मल वर्मा का जन्म तीन अप्रैल 1929 को शिमला में हुआ था। दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज से इतिहास में एमए करने के बाद उन्होंने कुछ दिन तक अध्यापन किया। 1959 से 1972 के बीच उन्हें यूरोप प्रवास का अवसर मिला। वह प्राग विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या संस्थान में सात साल तक रहे। उनकी कहानी ‘माया दर्पण’ पर 1973 में फिल्म बनी जिसे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का पुरस्कार मिला। उनकी कलम से कुल पाँच फिल्मों की कहानियाँ लिखी गई। इसलिए कहते हैं कि निर्मल वर्मा का साहित्य चित्रमय नहीं बल्कि चलचित्रमय है।

उन्हें 1999 में साहित्य में देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ दिया गया और 2002 में सरकार की ओर से साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण दिया गया।

‘रात का रिपोर्टर’, ‘एक चिथड़ा सुख’, ‘लाल टीन की छत’ और ‘वे दिन’ उनके चर्चित उपन्यास है। उनका अंतिम उपन्यास ‘अंतिम अरण्य’ 1990 में प्रकाशित हुआ। उनकी सौ से अधिक कहानियाँ कई कहानी संग्रहों में प्रकाशित हुई।

1958 में ‘परिंदे’ कहानी से प्रसिद्धी पाने वाले निर्मल वर्मा ने ‘धुंध से उठती धुन’ और ‘चीड़ों पर चाँदनी’ यात्रा वृतांत भी लिखे, जिसने उनकी लेखन विधा को नये मायने दिए। निर्मल वर्मा का निधन 25 अक्टूबर 2005 को हुआ।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi