Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मन आज फिर कंपकंपाया है

रेखा भाटिया

Advertiesment
हमें फॉलो करें रेखा भाटिया
मन आज फिर कंपकंपाया है,
खौफ की फाँस चुभती है,
कल क्या होगा मेरा,
क्या फिर से अमन की साँस ले पाऊँगा,
एक वह काली रात थी
जब फिरंगियों ने
अलगाव की कैंची चलाई,
भाई-भाई से अलग हुआ,
जातिवाद की आग
आज तक बुझ न पाई,
मेरी बिछोह की प्यास
कभी मिट न पाई,
गिरता-पड़ता संभालता रहा,
अपनी लाश अपने कन्धों पर ढोता रहा,
जग मुझ पर हँसता रहा,
कुछ सावन और बीते,
मौसम बदला नई कपोल खिली,
मन में एक आस बँधी थी
नहीं पता था एक फाँस अभी बची थी,
अयोध्या का मसला साझा है
या 2010 का नया तमाशा है,
दो तर्क हैं, दो मत हैं,
क्या यह एक और बँटवारा है,
कोई फैसला न हो पाता है,
कोई सुख से ना सो पाता है
धर्म के गलियारों में अधर्म के अँधेरे हैं,
यह सियासी दाँवपेंच, जातिवाद के झमेले हैं,
मन आज फिर कंपकंपाया है,
डर की फाँस चुभती है,
कल क्या होगा मेरा ,
क्या फिर से अमन की साँस ले पाऊँगा....!

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi