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वर्षा की रिमझिम धारा में
डॉ. अर्चना करंदीकर
वर्षा की रिमझिम धारा में, बह जाने को मन चाहे,सपनों के दो पंख लगाकर, उड़ जाने को मन चाहे।वर्षों तपनभरे जीवन में, सुख स्वप्नों के दो ही पल,बस दो ही पल में छलक उठेंगी, सारी खुशियाँ छल-छल-छल।जब असार इस दुनिया में, पाती हूँ कुछ थोड़ा मनभावन,चाहत की उस मन गंगा में, तर जाने को मन चाहे।दुःख-वर्षा से सींची जो बगिया, सुख-फूलों से महक गई,आनंद उपवन की हर डाली पर, पुलक की चिड़िया चहक गई।घोर तमस भी रोक सकेगा, आज न मेरी राहें,टहलूँगी ही स्नेह डगर पर, लाख बिछे हों गम चाहें।