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जानिए कितने और कहां होते हैं 'नरक'

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नरक वह स्थान है जहां पापियों की आत्मा दंड भोगने के लिए भेजी जाती है। दंड के बाद कर्मानुसार उनका दूसरी योनियों में जन्म होता है। स्वर्ग धरती के ऊपर है तो नरक धरती के नीचे। सभी नरक धरती के नीचे यानी पाताल भूमि में हैं।

इसे अधोलोक भी कहते हैं। अधोलोक यानी नीचे का लोक है। ऊर्ध्व लोक का अर्थ ऊपर का लोक अर्थात् स्वर्ग। मध्य लोक में हमारा ब्रह्मांड है। कुछ लोग इसे कल्पना मानते हैं तो कुछ लोग सत्य। लेकिन जो जानते हैं वे इसे सत्य ही मानते हैं, क्योंकि मति से ही गति तय होती है।

कौन जाता है नरक : ज्ञानी से ज्ञानी, आस्तिक से आस्तिक, नास्तिक से नास्तिक और बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति को भी नरक का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ज्ञान, विचार आदि से तय नहीं होता है कि आप अच्छे हैं या बुरे।

आपकी अच्छाई आपके नैतिक बल में छिपी होती है। आपकी अच्छाई यम और नियम का पालन करने में निहित है। अच्छे लोगों में ही होश का स्तर बढ़ता है और वे देवताओं की नजर में श्रेष्ठ बन जाते हैं। लाखों लोगों के सामने अच्छे होने से भी अच्छा है स्वयं के सामने अच्छा बनना।

धर्म, देवता और पितरों का अपमान करने वाले, पापी, मूर्छित और अधोगा‍मी गति के व्यक्ति नरकों में जाते हैं। पापी आत्मा जीते जी तो नरक झेलती ही है, मरने के बाद भी उसके पाप अनुसार उसे अलग-अलग नरक में कुछ काल तक रहना पड़ता है।

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निरंतर क्रोध में रहना, कलह करना, सदा दूसरों को धोखा देने का सोचते रहना, शराब पीना, मांस भक्षण करना, दूसरों की स्वतंत्रता का हनन करना और पाप करने के बारे में सोचते रहने से व्यक्ति का चित्त खराब होकर नीचे के लोक में गति करने लगता है और मरने के बाद वह स्वत: ही नरक में गिर जाता है। वहां उसका सामना यम से होता है।

पुराणों में : गरुड़ पुराण का नाम किसने नहीं सुना? पुराणों में नरक, नरकासुर और नरक चतुर्दशी, नरक पूर्णिमा का वर्णन मिलता है। नरकस्था अथवा नरक नदी वैतरणी को कहते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन तेल से मालिश कर स्नान करना चाहिए। इसी तिथि को यम का तर्पण किया जाता है, जो पिता के रहते हुए भी किया जा सकता है।

नरक का स्थान : महाभारत में राजा परीक्षिक्ष इस संबंध में शुकदेवजी से प्रश्न पूछते हैं तो वे कहते हैं कि राजन! ये नरक त्रिलोक के भीतर ही है तथा दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित है। उस लोग में सूर्य के पुत्र पितृराज भगवान यम है वे अपने सेवकों के सहित रहते हैं। तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए, अपने दूतों द्वारा वहां लाए हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों के अनुसार पाप का फल दंड देते हैं।

श्रीमद्भागवत और मनुस्मृति के अनुसार नरकों के नाम-
1.तामिस्त्र, 2.अंधसिस्त्र, 3.रौवर, 4, महारौवर, 5.कुम्भीपाक, 6.कालसूत्र, 7.आसिपंवन, 8.सकूरमुख, 9.अंधकूप, 10.मिभोजन, 11.संदेश, 12.तप्तसूर्मि, 13.वज्रकंटकशल्मली, 14.वैतरणी, 15.पुयोद, 16.प्राणारोध, 17.विशसन, 18.लालभक्ष, 19.सारमेयादन, 20.अवीचि, और 21.अय:पान, इसके अलावा.... 22.क्षरकर्दम, 23.रक्षोगणभोजन, 24.शूलप्रोत, 25.दंदशूक, 26.अवनिरोधन, 27.पर्यावर्तन और 28.सूचीमुख ये सात (22 से 28) मिलाकर कुल 28 तरह के नरक माने गए हैं जो सभी धरती पर ही बताए जाते हैं।

इनके अलावा वायु पुराण और विष्णु पुराण में भी कई नरककुंडों के नाम लिखे हैं- वसाकुंड, तप्तकुंड, सर्पकुंड और चक्रकुंड आदि। इन नरककुंडों की संख्या 86 है। इनमें से सात नरक पृथ्वी के नीचे हैं और बाकी लोक के परे माने गए हैं। उनके नाम हैं- रौरव, शीतस्तप, कालसूत्र, अप्रतिष्ठ, अवीचि, लोकपृष्ठ और अविधेय हैं।

संकलन- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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