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(अक्षय तृतीया)
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परमात्मा ने किया था रक्षाबंधन का प्रारंभ

राखी का सच्चा संदेश!

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- ब्रह्मकुमारी स्नेह
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रक्षाबंधन के पर्व का प्रारंभ स्वयं परमपिता परमात्मा ने किया था। वैसे तो भारत सहित दुनिया के कई देशों में रक्षाबंधन मनाए जाने के पीछे कई मान्यताएं हैं परंतु निष्कर्ष रूप में सबकी मान्यताएं लगभग एक जैसी ही हैं। यह भी माना जाता है कि देवासुर संग्राम में देवताओं की विजय के साथ रक्षाबंधन का त्योहार शुरू हुआ।

इसी देवासुर संग्राम के संबंध में एक किंवदती ऋग्वेद में है कि जब देवताओं और असुरों का युद्ध हुआ तब देवताओं पर संदेह होने लगा था। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्र ने भी भाग लिया था। तब राजा इंद्र की पत्नी इंद्राणी श्रावण पूर्णिमा के दिन गुरु बृहस्पति के पास गई थी तब गुरु ने ही विजय के लिए रक्षाबंधन बांधने का सुझाव दिया था और राजा इंद्र की विजय हुई थी।

बहरहाल, कालांतर में इस पर्व का रूप बदलते-बदलते आज भौतिक युग में भाई-बहन के बीच आकर सिमट गया है। अब तो केवल शौक के तौर पर बहन भाई को राखी बांधती है और उससे धन पाने की कामना रखती है। भाई भी कुछ न कुछ उपहार के रूप में बहन को राखी का कर्ज अदा करता है।

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आज भाव और भावना दोनों ही बदल गई हैं। श्रावण मास को सर्व आत्माओं के रक्षक शिव भोलेनाथ का महीना भी माना जाता है जिसमें शिव के शीघ्र प्रसन्न होने की बात कही जाती है। इसी मास में रक्षाबंधन मनाया जाने का रिवाज है। यह अपने आप में कई आध्यात्मिक रहस्यों को समेटे हुए है। आज के संदर्भ में हमें रक्षाबंधन के वास्तविक रहस्य को जानने की आवश्यकता है। जब तक हम रक्षाबंधन के आध्यात्मिक रहस्य को नहीं समझेंगे तब तक इसको मनाना सिर्फ एक परंपरा बनकर रह जाएगा।

वास्तव में रक्षाबंधन के पर्व का प्रारंभ स्वयं परमपिता परमात्मा ने किया था। जब इस सृष्टि पर मानवीय संवेदनाएं शून्य हो जाती है मानवीय रिश्ते टूटने लगते हैं तब परमात्मा अवतरित होकर सच्चे ब्राह्मणों की रचना करते हैं तथा उन्हें अपवित्रता को समाप्त करने तथा आसुरी वृत्तियों से मुक्त होने का संकल्प देते हैं।

जहां तक परमात्मा भोलेनाथ के प्रसन्न होने की बात है तो यह सत्य है कि जब कोई भी बच्चा अपने माता-पिता का पूर्ण आज्ञाकारी होता है तो मां-बाप प्रसन्न अवश्य होते हैं। उनकी आज्ञा है कि आज पूरे विश्व में रावण राज्य यानी आसुरी शक्तियों का बोलबाला है। इसे समाप्त करने के लिए रक्षाबंधन को केवल एक पारंपरिक रूप में नहीं बल्कि स्वयं जगतपिता परमात्मा शिव की आज्ञा समझकर पवित्रता के रिश्तों को पुनर्स्थापित करने के लिए मनाया जाए। यही राखी का सच्चा संदेश तथा परमात्मा शिव का आदेश है।


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