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बबूल के गुणकारी नुस्खे

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मानसून की बेरुखी का असर अब देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर पड़ने की आशंका है। विभिन्न हिस्सों में कम वर्षा से कृषि उपज घटने के कारण कृषि क्षेत्र की विकास दर नकारात्मक रहने की आशंका है, जिसका असर जीडीपी वृद्धि को पाँच प्रतिशत से भी नीचे धकेल सकता है।

जून-जुलाई में आने वाली मानसून की वर्षा का सबसे ज्यादा संबंध कृषि पैदावार से है। मानसून की वर्षा बेहतर होने से खरीफ और उसके बाद रबी मौसम की फसल अच्छी होती है, लेकिन इस बार कई हिस्सों में सामान्य से भी कम वर्षा के कारण कृषि उपज प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है।

कृषि पैदावार कम रहने से ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न उत्पादों की माँग भी कम होगी। इससे निजी क्षेत्र की माँग पर 50 प्रतिशत तक असर हो सकता है। इस लिहाज से मानसून की कमी जीडीपी पर दो प्रतिशत तक असर डाल सकती है।

वर्ष 2008-09 में जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही थी। चालू वित्त वर्ष में यह घटकर 4.7 प्रतिशत रह सकती है। यह अनुमान एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) ने ताजा अध्ययन में लगाया है।

अध्ययन के मुताबिक मानसून में यदि 15 प्रतिशत तक कमी रहती है तो कृषि उपज में दो प्रतिशत की गिरावट आएगी। ओद्यौगिक उत्पादन क्षेत्र की वृद्धि दर भी धीमी पड़कर 4.5 प्रतिशत रह जाएगी, जबकि निर्माण क्षेत्र में 8.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जाएगी। सेवा क्षेत्र में 8 प्रतिशत की वृद्धि हासिल होगी।

कुल मिलाकर जीडीपी में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की जा सकेगी, लेकिन यदि वर्षा में 22 प्रतिशत तक कमी रह जाती है तब कृषि क्षेत्र के उत्पादन में 6 प्रतिशत तक गिरावट रह सकती है और औद्योगिक उत्पादन में सामान्य परिस्थितियों में 5 प्रतिशत की वृद्धि के बजाय 4 प्रतिशत की ही वृद्धि होगी।

निर्माण क्षेत्र में 9 प्रतिशत के बजाय 8 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र में आठ प्रतिशत की ही वृद्धि हासिल होगी। कुल मिलाकर जीडीपी वृद्धि 4.7 प्रतिशत रह जाएगी।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने अर्थव्यवस्था में 7.1 प्रतिशत वृद्धि का अग्रिम अनुमान लगाया था, जबकि संशोधित आँकड़ों में यह 6.7 प्रतिशत रही।

रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में सुधार के संकेत देखते हुए चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में छह प्रतिशत से अधिक वृद्धि की उम्मीद व्यक्त की है।

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