Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

महिलाएँ और आर्थिक आजादी

थोड़ा बदला, बहुत बदलेगा

हमें फॉलो करें महिलाएँ और आर्थिक आजादी
आँकड़ों के ढेर में बैठकर इस बात की कल्पना करना काफी आसान है कि देश की आर्थिक प्रगति कैसे हो रही है। सभी दूर भारत के आधुनिक चेहरों को दिखाया जा रहा है। ऐसा चेहरा जिसमें प्रगति की चमक है और विकास की रेखाओं से आभामंडल शोभित है। दरअसल मीडिया से लेकर अन्य सभी माध्यम इंडिया राइजिंग और शाइनिंग से भरे पड़े हैं। देश तरक्की कर रहा है और वाकई कर भी रहा है।

उद्योग-व्यापार और अन्य क्षेत्रों में आँकड़े कह रहे हैं कि भविष्य में और भी उछाला आएगा और देश दुनिया में सिरमौर बनकर उभरेगा। इन तथ्यों के पीछे अगर झाँक कर देखें तो पता चलता है कि देश की आर्थिक आजादी और विकास में महिलाओं की भूमिका अब भी वैसी नहीं है जैसी होना चाहिए। इस मामले में देश ने 60 वर्षों में भी कोई ज्यादा प्रगति नहीं की है। देश में हो रहे आर्थिक विकास के परिप्रेक्ष्य में इन्वेस्ट इंडिया इनकम एंड सेविंग सर्वे कुछ महीनों पूर्व किया गया था जिसमें महिलाओं के संबंध में जो आँकड़े आए हैं वो ज्यादा उत्साहजनक नहीं हैं।

13 प्रतिशत महिलाएँ ही काम करती हैं
सामाजिक रूप से अब भी हम इस मामले में काफी पिछड़े हैं। घर की महिलाएँ काम करने के लिए जाए यह तभी संभव है जब परिवार काफी गरीब हो और परिवार के मुखिया के मेहनताने में घर नहीं चल सकता। यानी महिलाओं के घर से बाहर काम करने को सीधे रूप से गरीबी से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए और आँकड़े भी यही कहते हैं कि महिलाओं की कुल जनसंख्या का मात्र 13 प्रतिशत ही बाहर काम करने के लिए जाता है और उसमें से भी प्रति 10 महिलाओं में से 9 महिलाएँॅ असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने के कारण इन महिलाओं को सुविधाएँ तो दूर काम करने के लिए अच्छा वातावरण तक नहीं मिल पाता है।

गाँवों में ज्यादा काम करती हैं महिलाएँ
टेलीविजन पर आधुनिक भारत की महिलाओं की तस्वीर देखकर कोई विदेशी भ्रम में जरूर पड़ सकता है कि आधुनिक भारत के शहरों में रहने वाली महिलाएँ बाहर काम करने को लेकर काफी उत्साहित होती होंगी पर वस्तुस्थिति बिलकुल भिन्न है। गाँवों में महिलाएँ घर के बाहर जाकर ज्यादा काम करती हैं शहरी आबादी की तुलना में। गाँवों में 35 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएँ खेतों में काम करती हैं और इनमें से 45 प्रतिशत महिलाएँ वर्षभर में पचास हजार रुपए भी नहीं कमा पातीं और इनमें से भी सबसे ध्यान देने योग्य बात यह है कि मात्र 26 प्रतिशत महिलाएँ अपने पैसों को अपनी मर्जी अनुसार खर्च कर पाती है।

इसके अलावा यह भी तथ्य देखने में आया है कि शहरी क्षेत्र में वार्षिक आय 2 से 5 लाख वाले परिवारों में केवल 13 प्रतिशत महिलाएँ नौकरी करने जाती हैं जबकि पाँच लाख से ऊपर वाले आय वर्ग में यह प्रतिशत 9 ही है। वहीं गाँवों में पचास हजार से पाँच लाख रुपए प्रतिवर्ष की आय वाले परिवारों में महिलाओं के काम करने का प्रतिशत 16 से 19 है। वहीं पाँच लाख प्रतिवर्ष की आय वाले ग्रामीण परिवारों में यह प्रतिशत 4.9 है।

अलग राज्यों में अलग है स्थिति
यह देखने में आता है कि जिन राज्यों की आर्थिक स्थिति अच्छी है वहाँ पर महिलाओं के नौकरी या घर से बाहर काम करने का प्रतिशत भी कम है। पंजाब में 4.7 प्रतिशत महिलाएँ घर के बाहर काम करती हैं जबकि हरियाणा में 3.6, दिल्ली में 4.3 प्रतिशत, उप्र में 5.4 प्रतिशत वहीं बिहार में 16.3 प्रतिशत और उड़ीसा में 26 प्रतिशत महिलाएँ घर के बाहर नौकरी करने या काम करने के लिए जाती हैं। इसमें एक तथ्य जो गौर करने लायक है कि दक्षिण के राज्यों में जहाँ साक्षरता का प्रतिशत ज्यादा है वहाँ पर राज्यों की आर्थिक स्थिति अच्छी होने के बावजूद महिलाएँ घर के बाहर काम या नौकरी के लिए जाती हैं।

तमिलनाडु में यह प्रतिशत 39 है जबकि आंध्रप्रदेश में 30.5, कर्नाटका में 23.7 है। कुल मिलाकर अब भी सामाजिक बंधनों के कारण महिलाएँ चाहकर भी अपना योगदान आर्थिक विकास में नहीं दे पा रही हैं। हम चाहें कितनी भी आर्थिक आजादी की बातें कर लें पर जब तक महिलाओं के विकास व आजादी को लेकर खुलापन नहीं आएगा तब तक आर्थिक आजादी अधूरी नजर आती है।

बदलेगी तस्वीर...
नए जमाने के अनुसार अब महिलाओं की स्थिति में भी बदलाव होने की संभावना नजर आ रही है। देश के सर्विस सेक्टर में महिलाएँ अपनी हिस्सेदारी ज्यादा से ज्यादा निभाने का प्रयत्न करती हुई नजर आ रही हैं। अक्सर यह देखने में आता है कि घर में अगर लड़का और लड़की दोनों हैं तो लड़के को नौकरी के लिए दूसरे शहर में भेजने में भी कोई समस्या नहीं रहती और लड़की को बहुत हुआ तो उसी शहर में छोटी-मोटी नौकरी करने के लिए भेज दिया जाता है और वह भी काफी मान-मनौव्वल के बाद। देश में अब कई ऐसे क्षेत्र है जो पहले असंगठित क्षेत्र में आते थे परंतु अब बड़ी कंपनियों की दखल की वजह से वह अब संगठित होते नजर आ रहे हैं।

मुंबई की बात लें तो मुंबई में एक टैक्सी सेवा देने वाली कंपनी ने अपने यहाँ केवल महिला ड्रायवरों को ही रखा है। इसके अलावा एक संस्था ने घर में काम करने वाली बाइयों को अपने यहाँ नौकरी पर रखा है तथा वे संगठित तौर पर यह काम करने वाली पहली कंपनी बन गई है। कई कंपनियाँ अब रिक्रूटमेंट कंपनियों को महिला कर्मचारी की नियुक्ति पर ज्यादा कमीशन देने लगी है। इसके अलावा कई कंपनियों ने महिलाओं को फैल्क्सी टाइमिंग के अंतर्गत काम करने की अनुमति देना आरंभ कर दिया है। इसके अलावा मध्यमवर्गीय परिवारों में महँगाई बढ़ने के कारण परिवार के मुखिया की मजबूरी हो गई है कि वह घर की महिलाओं को बाहर अपने पैरों पर खड़ा होने का मौका दे। (नईदुनिया)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi