लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रह चुके लालकृष्ण आडवाणी के लिए केवल प्रधानमंत्री पद बचा है और वे इसके लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। 8 नवंबर, 1927 को अविभाजित भारत के कराची में जन्म लेने वाले आडवाणी भाजपा के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
उनका राजनीतिक करियर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुआ। वर्ष 1998 में पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद आडवाणी ने दल की नीतियों में बदलाव किया और इसे हिंदुत्व की ओर बढ़ाया। उनके नेतृत्व में राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए आंदोलन भी किया गया।
नब्बे के दशक की शुरुआत में उन्होंने रथयात्रा शुरू की और कारसेवकों के साथ बाबरी मस्जिद में पूजा करने के लिए आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप मस्जिद गिरा दी गई और इसके बाद सारे देश में हिंसा फैली। देश में दो अस्थिर सरकारों के बाद भाजपा ने राजग मोर्चे का गठन किया और वाजपेयी के नेतृत्व में सत्ता संभाली।
वे इस दौरान गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री भी रहे लेकिन 2004 में जब पार्टी को आम चुनावों मे जीत का भरोसा था, पार्टी वांछित सफलता हासिल नहीं कर सकी और आडवाणी प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं बन सके। पर अब पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से हट जाने के बाद आडवाणी प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार हैं।
वर्ष 2008 में उनकी आत्मकथा-माई कंट्री, माई लाइफ-प्रकाशित हुई जिसमें उन्होंने बहुत से मुद्दों पर अपना पक्ष रखा है।