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कुंभ मेला इलाहाबाद, द्वितीय नायक: माधव विष्णु प्रयाग

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हमें फॉलो करें विष्णु प्रयाग
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माधव स्वयं महाविष्णु के स्वरूप हैं। तीर्थराज के रूप में उन्हीं का पूजन किया जाता है। प्रयाग को विष्णु प्रजापति क्षेत्र और हरिहर क्षेत्र माना जाता है। प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पहले इस पवित्र क्षेत्र में दस अश्वमेध यज्ञ किए थे। भगवान शिव स्वयं इस क्षेत्र में निवास कर यहां वेणीमाधव की उपासना करते हैं।

माधव की महिमा से यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। कहा गया है कि प्रयाग क्षेत्र में कदम रखते ही तीर्थयात्री के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। प्रयाग क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया है- संगम या त्रिवेणी, प्रयाग और प्रयाग मंडल। ये क्षेत्र माधव का पुण्य क्षेत्र है।

पुराणों में कहा गया है कि प्रलयकाल में जब सारी सृष्टि जल में डूब जाती है, तब महाविष्णु माधव बाल मुकुन्द का रूप धारण कर अक्षयवट के पत्ते पर शयन करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने माधव को मित्र और हितकारी कहा है। इनका सचिव सत्य है और श्रद्धा इनकी प्रिय नारी है-

सचिव सत्य श्रद्धा प्रियनारी।
माधव सरिस मीत हितकारी॥

पुराण में कहा गया है कि सनकादि कुमारों के पूछने पर भगवान विष्णु ने अपने माधव रूप का परिचय इस प्रकार दिया था-

मूले यः पुरुषो दृष्टः सोऽहमक्ष्य्य माधवः।
वाट माधव नामापि मूल माधव इत्यपि॥

मूल में जो पुरुष आप लोगों ने देखा है, वह मैं अक्षय माधव हूं। मुझे वट माधव और मूल माधव भी कहते हैं।

तीर्थराज प्रयाग में माधव कई रूपों में विराजमान हैं। इन रूपों की उपासना के लिए यहां मंदिर हैं। प्रयाग महात्म्य में इनके नाम शंख माधव, चक्र माधव, यदा माधव, पद्‌म माधव, असि माधव अनंत माधव, बिन्दु माधव, मनोहर माधव गिनाए गए हैं। इनके अलावा संकटहर माधव की महिमा के बारे में बताया गया है।

महाप्रभु चैतन्य रूप गोस्वामी वल्लभाचार्य इस मंदिर में पूजन-कीर्तन करने आए थे, इसीलिए माधव मंदिरों में इनको काफी महत्व दिया जाता है। तीर्थराज प्रयाग में माधव ही सबसे श्रेष्ठ देवता माने जाते हैं।

वैसे सभी माधव मंदिरों में लाखों तीर्थयात्री हर साल दर्शन करके अपनी तीर्थयात्रा का पुण्य फल प्राप्त करते हैं। प्रयाग में संगम तट के धंधों से जुड़े हुए लोग 'जय माधव' कहकर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं।

प्रसन्न वदनां भोजं पद्‌मगर्भा रूणेक्षणम्‌।
इन्दीवर दलं श्यामं शंख चक्र गदाब्जयुत्‌॥
विकसत्कंज किंजल्क पीत कौशेय भूषितम्‌।
कांची गुण लसच्छ्रोणि भक्त स्वांतब्जविष्टरम्‌॥

ब्रह्मा ने माधव के चतुर्भुज रूप का ध्यान किया था। उन्होंने अपनी स्तुति में विष्णु को अनन्तवीर्य हरि और यज्ञ फल देने वाला कहा था।

ब्रह्मा ने माधव की कृष्ण, विष्णु, रमाकांत कहकर वंदना की थी।

नारायणा क्षरानन्त शरणागत पालक।
कृष्ण विष्णो रमाकांत पाहि मां शरणागतम्‌।
नमो देवाधि देवाय शंख चक्र गदा भृते।
नमः सद्‌गुण रूपाय नमोब्रह्माण्ड हेतवे

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