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हिंदुत्व : प्रयाग कुंभ में गोदान का महत्व

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सब तरह के कल्याण और सभी के उपकार के लिए गोदान उपयोगी है। प्रयाग में यह दान करना चाहिए। तीर्थराज को यह दान सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। प्रयाग माहात्म्य में कहा गया है कि जो श्रेष्ठ विमान पर चढ़कर दिव्य अलंकारों से विभूषित होकर स्वर्ग जाना चाहे उसे गोदान करना चाहिए। यह दान दैहिक, दैविक और भौतिक पापों को नष्ट करता है। यह दान देने वाले को वैकुण्ठ ले जाता है। यह उसके पितरों को मोक्ष देता है।

गोदान विधि:- पुण्यकाल में पवित्र होकर पवित्र स्थान में अपनी धर्मपत्नी के साथ गोदान करना चाहिए। पहले आचमन करके प्राणायाम करना चाहिए। फिर कहना चाहिए मैं अपने सब पापों को दूर करने के लिए, सभी मनोरथ पूरा करने के लिए वेणीमाधव की प्रसन्नता के लिए गोदान का संकल्प करता हूं। संकल्प में मास, तिथि, वार, नक्षत्र, योग और अपने गोत्र का उच्चारण भी करना चाहिए।

इसके बाद गणेशजी का पूजन कर गोदान लेने वाले ब्राह्मण का वरण करना चाहिए।

गोदान लेने का अधिकारीः- गोदान लेने का अधिकारी वह ब्राह्मण है, जो अंगहीन न हो, यज्ञ करा सकता हो, शांत और सदाचारी हो, जिसका, कुटुम्ब भरा-पूरा हो और जिसकी पत्नी जीवित हो।

गोदान से पहले गाय का श्रृंगार और पूजनः- गोदान से पहले वस्त्र, आभूषण और अन्य सामग्री से गाय की पूजा करनी चाहिए। गाय के सभी अंग में देवताओं का वास है। उसकी सींगों में ब्रह्मा और विष्णु का निवास है।

सभी स्थावर और चर तीर्थ इसकी सींगों के अगले हिस्से में रहते हैं। महादेव इसके सिर में स्थित हैं। माथे के अगले हिस्से में गौरी और नथने में कार्तिकेय का निवास है। दोनों नाक में कम्बल और अश्वतर नाग विराजते हैं, दोनों कानों में अश्विनी कुमार का निवास है।

इसकी आंखों में सूर्य और चन्द्रमा, दांतों में वासुदेव, जीभ में वरुण और रंभाने में सरस्वती विराजती हैं। इसके दोनों गालों में मास और पखवारे का वास है। दोनों होठों में दोनों संध्या और गले में देवराज इन्द्र विराजमान हैं, मुख में गंधर्व, उर में सांध्यगण, जांघों में चारों पापों के साध धर्म का निवास है।

खुर के बीच गंधर्व और उसके आगे नाग रहते हैं। खुर के आगे-पीछे अप्सराओं का निवास है। उसकी पीठ में सभी रूद्र और जोड़ों में सभी वसु रहते हैं। इसके दोनों नितम्बों पर पितर और पूंछ पर चन्द्रमा का निवास है। इसके बालों में सूर्य की किरणें विराजती हैं। गोमूत्र में साक्षात गंगा और गोबर में यमुना का निवास है।

इसके दूध में सरस्वती और इसके दही में नर्मदा का निवास है। इसके घी में अग्नि विराजमान हैं। अट्‌ठाईस करोड़ देवता इसके रोयें में रहते हैं। इसके पेट में पृथ्वी और चारों स्तनों में चार समुद्र रहते हैं।

गोदान करने वाले को इन सभी देवताओं का गाय के शरीर में आह्वान करना चाहिए। फिर भक्तिपूर्वक सोलह उपचारों से गाय की पूजा करनी चाहिए। उसे वस्त्र और आभूषणों से सजाना चाहिए। उसके गले में माला पहनानी चाहिए।

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फिर आगावः मंत्र से इसकी पूजा करनी चाहिए। गाय को सूत या वस्त्र ओढ़ाकर कहना चाहिए- मैंने यह वस्त्र दिया है, गाय इसे ग्रहण करें, गोमाता तुम जगत की माता हो, तुम विष्णु के चरणों में रहती हो, तुम मेरा दिया हुआ ग्रास ग्राहण करो और मेरी रक्षा करो, तुम्हारे अंगों में चौदहों भुवन रहते हैं, इसलिए लोक-परलोक में मेरा कल्याण होगा। मेरे आगे गाय रहें, मेरे पीछे गाय रहें, मेरे अगल-बगल गाय रहें, मैं गायों के बीच रहूं।

इस तरह कहकर भक्तिपूर्वक तीन बार प्रदक्षिणा करके मंत्र को पढ़ते हुए अपनी पत्नी के साथ गाय को प्रणाम करें। प्रदक्षिणा और पूजा के समय इन श्लोकों का उच्चारण करना चाहिए-

सुरभे त्वांजगत्माता देवी विष्णु पदे स्थिता।
ग्रासं ग्रहाण मद्‌दत्तं गौर्मातस्त्रातुमर्हसि॥
गवामंगेषु तिर्ष्ठान्त भुवनानि चतुर्दश।
यस्मात्तस्माच्छिवं मेस्या दिहलोंके परत्र च॥
गावो ममाग्रतः सन्तु गावोमे सन्तु पृष्ठतः।
गावोमे पार्श्वयोसन्तु गवांमध्ये वसाम्यहम्‌॥

समुद्र मंथन के समय पांच गाय उत्पन्न हुई थीं। उनमें नंदा नाम की गाय को नमस्कार करना चाहिए। गाय की पूंछ दाहिने हाथ में लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके पितरों का तर्पण तिल और जल से करना चाहिए। पितरों के साथ ही गुरु तक सबका तर्पण करना चाहिए।

गाय की पूंछ में डूबे हुए जल से देवता, ऋषि-मुनि, मनु, असुर, नाग, माहका, चण्डिका, दिग्‌पाल, लोकपाल, गृहदेवता का तर्पण करना चाहिए। विश्वदेव, आदित्य, साध्य, मरुद्‌गण, क्षेत्र, पीठ, उपपीठ, नद-नदी, सागर, पाताल की नाग स्त्रियां, नाग, कुलपर्वत, पिशाच, प्रेत, गंधर्व, राक्षस, पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, पृथ्वी, आकाश-पाताल और अंतरिक्ष के वासियों, तपस्वी भगवान, परमेश्वर, क्षेत्र औषधि, लता, वृक्ष, वनस्पति, अधिदेवता, कपिल, शेषनाग, तक्षक, अनंत, जलचर जीव, चौदह यमराज, यमदूत, पशु-पक्षी, बकरी, गाय-भैंस और इधर-उधर मौजूद सभी प्रणियों का इस जल से तर्पण करना चाहिए।

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जो लोग सांप काटने से मरे हैं, बाघों के प्रहार से मरे हैं, सींग, दांत और नाखून के प्रहार से मारे गए हैं, जो पुत्रहीन हैं, जिनका संस्कार नहीं हुआ है, जिनका विवाह नहीं हुआ, जो धर्म रहित हैं और दूसरे ऋषि-पितर, देवता, मामा वगैरह सभी को इस जल से तृप्त करना चाहिए।

इस तरह जलदान करके हाथ में कुश लेकर पूरब की ओर मुंह करके खड़े हो जाना चाहिए। गाय का दान लेने वाले और गाय को उत्तर दिशा कि ओर मुंह करके खड़ा करना चाहिए और उसका दान करना चाहिए।

गाय कैसी होः- सोने जैसी सींग वाली, चांदी जैसी खुरवाली, तांबे जैसी पीठवाली, दूध देने वाली, मोती जैसी पूंछ वाली, जवान और बछड़े के साथ जो गाय है, उसी का दान अच्छा माना गया है।

गाय के साथ सोने या कांसे के बर्तन में घी-दूध और तिल रखकर कुश के साथ उसे गाय की पूंछ पर रखकर ब्राह्मणों को देना चाहिए। बाद में दान की पूर्णता के लिए ब्राह्मण को सोना और दक्षिणा देनी चाहिए।

गोसूत का पाठ करना चाहिए। तीर्थराम प्रयाग में उभयमुखी। (ब्याती हुई गाय) का दान माघ महीने में करने से सारी पृथ्वी के दान का पुण्यफल मिलता है। इन दिनों कम साधन वाले श्रद्धालु गाय के बजाय उसकी पूंछ पकड़कर अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देकर गोदान का पुण्य प्राप्त करते हैं।
- वेबदुनिया संदर्भ Godan, Tirthraj Prayag

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