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अपराजेय सेनानी बाजीराव (प्रथम)

18 अगस्त : जन्मदिवस

हमें फॉलो करें अपराजेय सेनानी बाजीराव (प्रथम)
मंदार कुलकर्ण

बच्चो, क्या आप जानते हैं वीर शिवाजी जैसे ही शूर एक और मराठा-वीर इतिहास पुरुष को? भारत का इतिहास जिसके तेज से तेजस्वी हो गया उस महापुरुष का नाम था बाजीराव पेशवा (प्रथम)। बाजी का अर्थ होता है वीर, पराक्रम करने वाला। अपने वीरता भरे कार्यों से इस योद्धा ने अपने नाम को सार्थक कर दिया।

बाजीराव, शिवाजी महाराज के पौत्र शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधान) थे। इनके पिता श्री बालाजी विश्वनाथ पेशवा भी शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक था। बचपन की अच्छी आदतें बड़े होकर बहुत काम आती हैं इसीलिए बचपन में जितना हो सके अच्छी आदतें सीखना चाहिए।

13-14 वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ घूमते थे। उनके साथ घूमते हुए वह दरबारी चालों व रीतिरिवाजों को आत्मसात करते रहते थे। यह क्रम 19-20 वर्ष की आयु तक चलता रहा। जब बाजीराव के पिताश्री का अचानक निधन हो गया। पिता के निधन के बाद मात्र बीस वर्ष की आयु के बाजीराव को शाहूजी महाराज ने पेशवा बना दिया। वे जानते थे बाजीराव आयु में छोटे हैं लेकिन वीरता, कर्तव्य में बड़े हैं।

पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते रहे। इसके लिए उन्हें अपने दुश्मनों से लगातार लड़ाईयाँ करना पड़ी। अपनी वीरता, अपनी नेतृत्व क्षमता व कौशल युद्ध योजना द्वारा यह वीर हर लड़ाई को जीतता गया। विश्व इतिहास में बाजीराव पेशवा ऐसा अकेला योद्धा माना जाता है जो कभी नहीं हारा।

छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह वह बहुत कुशल घुड़सवार था। घोड़े पर बैठे-बैठे भाला चलाना, बनेठी घुमाना, बंदूक चलाना उनके बाएँ हाथ का खेल था। घोड़े पर बैठकर बाजीराव के भाले की फेंक इतनी जबरदस्त होती थी कि सामने वाला घुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था।

उस हमारे राष्ट्र को ऐसे ही वीर की आवश्यकता थी। यह वह समय था, जब भारत की जनता मुगलों के साथ-साथ फिरंगियों व पुर्तगालियों के अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी। ये हमारे देवस्थान तोड़ते, जबरन धर्म परिवर्तन करते, महिलाओं व बच्चों को मारते व भयंकर शोषण करते थे। ऐसे में बाजीराव पेशवा ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक ऐसी विजय पताका फहराई कि चारों ओर उनके नाम का डंका बजने लगा। लोग उन्हें शिवाजी का अवतार मानने लगे। और क्यों न माने? बाजीराव में शिवाजी महाराज जैसी ही वीरता व पराक्रम था तो वैसा ही उच्च चरित्र भी था।

आम जन के प्रति वैसा ही वात्सल्य भाव, अपनत्व था और दुष्टों के लिए वैसा ही दंड विधान।
बाजीराव कहते थे -

'जड़ों पर प्रहार करो शाखाएँ अपने आप धराशायी होंगी।'

वास्तव में हमारा देश महान है जहाँ ऐसे सपूत, ऐसे वीरों ने जन्म लिया है। इस देश की ही माटी की यह महिमा है जिसमें संत और वीरों के रूप में सुमन खिलते हैं। हमें चाहिए कि हम इन महापुरुषों के कार्यों का सतत् चिंतन मनन कर उनके गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें इस प्रकार हम न केवल स्वयं को बल्कि हमारे माता-पिता तथा देश को भी गौरान्वित कर पाएँगे।

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