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एक भारतीय आत्मा: माखनलाल चतुर्वेदी

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हमें फॉलो करें भारतीय आत्मा
माखनलाल चतुर्वेदी सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे हिन्दी रचनाकार थे। उन्हें 'एक भारतीय आत्मा' उपनाम से भी जाना जाता था। राष्ट्रीयता माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य का कलेवर तथा रहस्यात्मक प्रेम उनकी आत्मा रही। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं भाग्य पर इठलाऊं
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक

हिन्दी जगत के कवि, लेखक, पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को बावई (मध्यप्रदेश) में हुआ। इनका परिवार राधावल्लभ सम्प्रदाय का अनुयायी था इसीलिए चतुर्वेदीजी के व्यक्तित्व में वैष्णव पद कंठस्थ हो गए। प्राथमिक शिक्षा के बाद घर पर ही उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। 15 वर्ष की आयु में आपका विवाह हुआ और अगले ही वर्ष 8 रु. मासिक वेतन पर इन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया।

1913 में चतुर्वेदीजी ने प्रभा पत्रिका का संपादन आरंभ किया, जो पहले पूना और बाद में कानपुर से छपती रही। इसी दौरान उनका परिचय गणेश शंकर विद्यार्थी से हुआ जिनके देशप्रेम और सेवाभाव का चतुर्वेदीजी पर गहरा प्रभाव पड़ा। 1918 में कृष्णार्जुन युद्ध नामक नाटक की रचना की और 1919 में जबलपुर से कर्मवीर का प्रकाशन किया।

12 मई 1921 को राजद्रोह में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1943 में आप हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे। हिन्दी काव्य के विद्यार्थी माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं पढ़कर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। उनकी कविताओं में कहीं ज्वालामुखी की तरह धधकता हुआ अंतरमन है, जो विषमता की समूची अग्नि सीने में दबाए फूटने के लिए मचल रहा है तो कहीं विराट पौरूष की हुंकार, कहीं करुणा की दर्दभरी मनुहार।

वे जब आक्रोश से उद्दीप्त होते हैं तो प्रलयंकर का रूप धारण कर लेते किंतु दूसरे ही क्षण वे अपनी कातरता से विह्वल हो जाते। चतुर्वेदीजी के व्यक्तित्व में संक्रमणकालीन भारतीय समाज की विरोधी विशिष्टताओं का सम्पुंजन दिखाई पड़ता था।

माखनलालजी की आरंभिक रचनाओं में भक्तिपरक अथवा आध्यात्मिक विचार प्रेरित कविताओं का भी काफी महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी कविताओं में प्रकृति चित्रण का भी एक विशेष महत्व है। मध्यप्रदेश की धरती का उनके मन में एक विशेष आकर्षण है।

भाषा और शैली की दृष्टि से उन पर आरोप लगाया जाता था कि उनकी भाषा बड़ी बेडौल है। उसमें कहीं-कहीं व्याकरण की अवहेलना की गई है। किंतु ये सारे दोष एक बात की सूचना देते हैं कि कवि ने अपनी अभिव्यक्ति को इतना महत्वपूर्ण समझा है कि उसे नियमों में हमेशा आबद्ध रखना उन्हें स्वीकार नहीं हुआ। 1949 में नको साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। 30 जनवरी 1968 को उनकी मृत्यु हो गई।

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