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प्यार में क्यों पागल हो जाता है आदमी...

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लंदन , रविवार, 11 नवंबर 2012 (16:00 IST)
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अब तो वैज्ञानिकों ने भी सदियों पुरानी इस मान्यता पर मोहर लगा दी है कि प्यार में पड़ने पर मति मारी जाती है। शोधकर्ताओं ने प्रेम में पड़े व्यक्ति के दिमाग में होने वाले रसायनिक परिवर्तनों की मैपिंग कर ली है और यह पता लगाया है कि प्रेम में पागल होने के समय दिमाग के कौन से हिस्से काम करना शुरू कर देते हैं और कौन से ठप पड़ जाते हैं।

स्कैनिंग तकनीक से स्नायुतंत्र विशेषज्ञों ने इस रहस्य से पर्दा उठाया है कि प्रेम में पड़ने पर कोई व्यक्ति क्यों चंचल, चपल, दीवाना और हास्यास्पद तक हो जाता है। यह भी कि प्यार हमें क्यों नर्वस और अस्थिर बुद्धि बना देता है।

वैज्ञानिकों ने पाया कि किसी व्यक्ति के प्रेम में पड़ने पर उसके दिमाग में निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला अग्रिम कोर्टेक्स बंद हो जाता है। एमआरआई स्कैन से पता चलता है कि कोर्टेक्स तभी ठप पड़ता है जब संबंधित व्यक्ति को उसके सर्वाधिक प्रिय व्यक्ति की फोटो दिखायी जाती है।

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के न्यूरो एस्थेटिक्स के प्रोफेसर सेमीर जकी ने कहा कि जब आप उस व्यक्ति की ओर देखते हैं जिसे आप बेइंतहा चाहते हैं तो आपके दिमाग के कुछ हिस्से सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन एक बहुत बड़ा हिस्सा निष्क्रिय भी हो जाता है इसमें वह भाग भी शामिल होता है जो निर्णय लेने का काम करता है।

जकी का मानना है कि दिमाग उच्च जैविकीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस प्रकार से कार्य करता है ताकि प्रजनन को संभव बनाया जा सके। दिमाग का निर्णय लेने वाला हिस्सा जब निष्क्रिय हो जाएगा तभी एक जोड़ा एकजुट होकर प्रजनन को संभव बना पाएगा।

प्रेम में पड़ने के समय दिमाग में डोपामाइन नामक रसायन की मात्रा बढ़ जाती है। डोपामाइन हमारे खुशी, दुख, पीड़ा, इच्छा, लत आदि अनुभवों से जुड़ा होता है और इसकी मात्रा में वृद्धि होने पर प्रेम में पड़े व्यक्ति की हालत नशेड़ी जैसी हो जाती है जिसे किसी भी तर्क के सहारे इससे बाहर नहीं निकाला जा सकता।

परीक्षणों से पता चलता है कि कोकीन जैसे मादक पदाथरे के सेवन से वही अनुभूति होती है जो प्रेम में पड़े व्यक्ति पर डोपामाइन की वजह से होती है।

शोधकर्ताओं के अनुसार एड्रेनलिन रसायन को प्यार का रसायन कहा जाता है और जब प्रेमी या प्रेमिका सामने होते हैं तो दिल की धड़कन बढ़ने, हथेलियों में पसीना आने तथा मुंह सूखने के अनुभव के पीछे यही रसायन काम करता है। डरने पर भी यही हार्मोन पैदा होता है। (भाषा)

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