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आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्दशी तिथि)
  • तिथि- ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • जयंती/त्योहार/व्रत/मुहूर्त-वट सावित्री पूर्णिमा(दक्षिण भागे)
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
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मुहर्रम की 10 तारीख यानी यौमे-आशूरा

हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन

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- चुन्नीलाल वाधवानी
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मंगलवार को मुहर्रम की 10 तारीख यानी यौमे-आशूरा पर ताजिए व अखाड़े निकाले जाएंगे। सरकारी ताजियों के साथ-साथ अन्य स्थानों से निकलने वाले ताजिए कर्बला पहुंचेंगे। हिन्दू-मुस्लिम श्रद्धालु बड़ी तादाद में ताजिए के साथ रहेंगे। इस दिन मस्जिदों में खुसूसी मजलिसें होंगी, जिनमें मुहर्रम व वाकिआते कर्बला के मुख्तलिफ पहलुओं पर तकरीरें होंगी। विशेष दुआएं भी की जाएंगी।

सिंध के सूफी संत व सिंधी भाषा के महान कवि शाह अब्दुल लतीफ भिटाई, इमाम हुसैन को यूँ श्रद्धांजलि देते हैं।

'बड़ी मुश्किल से दुनिया को मिलेगी,
मिसाल ऐसी मिसाली आशिकी की,
रहेगी जॉफरोशों को सदा याद,
जवाँ मर्दी हुसैन इबने अली की।'

हजरत इमाम हुसैन को शहीद करने के बाद उनकी लाश के सिर को एक नेजे पर रख कर कर्बला के मैदान से दमश्क की तरफ यजीद को भेजा गया था।

पैगंबर ऐ इस्लाम मोहम्मद साहब के निवासे इमाम हुसैन को पूरे आल समेत प्यासा व भूखा रख कर शहीद किया गया था। यजीद ने सल्तनत की खातिर इस्लाम के उसूलों को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और इमाम हुसैन ने शहादत देकर इस्लाम के उसूलों को जिन्दा रखा।

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'कत्ले हुसैन असल में मरगे यजीद हैं, इस्लाम जिन्दा होता है हर कर्बला के बाद।' कर्बला की लड़ाई हकीकत में सच व झूठ की लड़ाई थी। ये मानवता, लोकतंत्र व समानता की लड़ाई थी। इस्लाम के मानने वालों की बहुसंख्या मोहम्मद साहब के नवासे, अली के बेटे और फातिमा के जिगर के टुकड़े इमाम हुसैन के साथ थी, और ऐयाश व जालिम बादशाह यजीद ने अपने कबीले बन्नी उमेय की फौजी व माली ताकत के बल पर बादशाही हासिल की थी।

जनता ऐसे जालिम व ऐयाश को अपना खलीफा मानने को तैयार नहीं थी और इमाम हुसैन की शहादत हुई। ये शहादत केवल इस्लाम के मानने वालों के लिए नहीं थी वरन्‌ पूरी इंसानियत के लिए थी। हर कौम जो इंसाफ, लोकतंत्र व समानता के उसूलों को चाहती है, उसके लिए कुर्बानी थी। किसी कवि ने ठीक ही कहा है। 'इंसान को बेदार तो हो लेने दो, हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन।'

ऐयाश व जालिम बादशाह यजीद को मरलक बिन अश्तर की बेटी रेहाना ने 1 नवंबर ईसवी सन्‌ 683 को अपने छूपे खंजर से नाच करते हुए मार दिया था। यजीद उस वक्त 36 वर्ष के थे। रेहाना ने यह काम करके इतिहास में अपना नाम लिखवा लिया। क्या आज का मुसलमान इमाम हुसैन के बताए हुए रास्ते, मानवता लोकतंत्र व समानता के उसूलों पर चल रहा है।

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