हेतु- प्रवास के दौरान आने वाले भय टल जाते हैं।
कुन्दावदात-चलचामर-चारुशोभं विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् ।
उद्यच्छशांक शुचिनिर्झर-वारिधार-मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ॥ (30)
श्वेत-शुभ्र कुंद पुष्पों के लावण्य से युक्त ये दो चँवर जब आपके इर्द-गिर्द डुलते हैं, तो लगता है कांचनवर्णी शिखरवाले सुवर्णाचल के सीने पर से चाँदनी की गंगा जैसे झरने झर-झर बहे जा रहे हों!
ऋद्धि- ह्रीं अर्हं णमो घोरगुणाणं ।
मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं पार्श्वनाथाय ह्रीं धरणेन्द्र-पद्मावती सहिताय अट्टे मट्टे क्षुद्रविघट्टे क्षुद्रान् स्तम्भय स्तम्भय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा।