- चक्रधर शुक्ल
उम्र बयासी हिम्मत वाले, दादाजी हैं बड़े निराले
बात-बात पे टोका-टाकी, बातें उनकी सीधी-सादी
नाती-पोते जान से प्यारे, गोली, बिस्कुट प्यारे-प्यारे
ला-ला करके देते रहते, दादी की बातें भी सहते
धमा चौकड़ी में भी हाथ, दादाजी की क्या है बात?
रुतबा उनका अब भी कायम, कभी गरम तो कभी मुलायम
कंप्यूटर में गेम खेलते, पास मिला तो क्रिकेट देखते
सुबह-सैर मट्ठे का सेवन, फिर जाते मंदिर-महादेवन
आते ही फल, दूध चाहिए, हाँ में हाँ इनके मिलाइए
दादाजी हैं बड़े निराले, जिस पर चाहे रौब जमा लें।
बूढ़ी दादी
- अशोक अंजुम
बूढ़ी दादी, हाथ में लाठी
झुकी कमर है, पूरे अस्सी साल उमर है।
दाँत न मुँह में, देह पे झुर्री
बाल दूध से, आँख पे चश्मा
गिरी नजर है।
पूरे अस्सी साल उमर है।
खूब कहानी, प्यारी-प्यारी
हमें सुनातीं, खड़ी समस्या
अगर घर में, हल समझातीं
काम न करतीं, फिर भी उनकी खूब
कदर है, पूरे अस्सी साल उमर है।