क्राफ्ट विषय में उसने बागवानी लिया था। सबसे अच्छा उसे यही लगा था। बाकी दर्जीगिरी और कताई-बुनाई भी ऐच्छिक विषयों में थे, परंतु दर्जीगिरी के विषय में तो सोचकर ही वह सिहर उठता था।
पहले कपड़े का नाप लो, फिर जो आइटम बनाना है उसके हिसाब से कपड़े की कटाई करो, फिर सिलाई। थोड़ा भी इधर-उधर हुआ कि कपड़े का सत्यनाश हुआ। फिर कौन मशीन में धागा डालता फिरे, पागलों का काम, उससे तो कताई-बुनाई अच्छी है।
पोनी ले लो तकली में फंसा दो और घुमा दो। इधर तकली ने फेरे लिए उधर कच्चा सूत तैयार। किंतु इसमें भी परेशानी, तकली के ऊपरी पांइट पर पोनी फंसना बहुत कठिन काम है। अनाड़ी रहे तो सूत बार-बार टूटे। खैर अब तो गांधीजी भी नहीं है काहे का सूत काहे की खादी।