Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

शिवाजी को गुरु का संदेश

प्रेरक कहानी

हमें फॉलो करें शिवाजी को गुरु का संदेश
ND
ND
जब छत्रपति शिवाजी को यह पता चला कि समर्थ रामदासजी ने महाराष्ट्र के ग्यारह स्थानों में हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित की है और वहाँ हनुमान जयंती उत्सव मनाया जाने लगा है, तो उन्हें उनके दर्शन की उत्कृष्ट अभिलाषा हुई। वे उनसे मिलने के लिए चाफल, माजगाँव होते हुए शिगड़वाड़ी आए। वहाँ समर्थ रामदासजी एक बाग में वृक्ष के नीचे "दासबोध" लिखने में मग्न थे।

शिवाजी ने उन्हें दंडवत प्रणाम किया और उनसे अनुग्रह के लिए विनती की। समर्थ ने उन्हें त्रयोदशाक्षरी मंत्र देकर अनुग्रह किया और "आत्मानाम" विषय पर गुरुपदेश दिया (यह "लघुबोध" नाम से प्रसिद्ध है और "दासबोध" में समाविष्ट है।) फिर उन्हें श्रीफल, एक अंजलि मिट्टी, दो अंजलियाँ लीद एवं चार अंजलियाँ भरकर कंकड़ दिए।

जब शिवाजी ने उनके सान्निध्य में रहकर लोगों की सेवा करने की इच्छा व्यक्त की, तो संत बोले- "तुम क्षत्रिय हो, राज्यरक्षण और प्रजापालन तुम्हारा धर्म है। यह रघुपति की इच्छा दिखाई देती है।" और उन्होंने "राजधर्म" एवं "क्षात्रधर्म" पर उपदेश दिया।

शिवाजी जब प्रतापगढ़ वापस आए और उन्होंने जीजामाता को सारी बात बताई, तो उन्होंने पूछा- "श्रीफल, मिट्टी, कंकड़ और लीद का प्रसाद देने का क्या प्रयोजन है?" शिवाजी ने बताया- "श्रीफल मेरे कल्याण का प्रतीक है, मिट्टी देने का उद्देश्य पृथ्वी पर मेरा आधिपत्य होने से है, कंकड़ देकर यह कामना व्यक्त हो गई है कि अनेक दुर्ग अपने कब्जे में कर पाऊँ और लीद अस्तबल का प्रतीक है, अर्थात उनकी इच्छा है कि असंख्य अश्वाधिपति मेरे अधीन रहें।" इस प्रकार राजधर्म को समझकर शिवा ने अपनी शक्ति का विस्तार किया और न्याय नीति की स्थापना की।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi